Monday, May 26, 2008

ढाबे किसम किसम के




जब नील आर्म स्ट्रोंग चाँद पर पहली बार पहुंचे तो जोर की भूख लगी थी
सुरक्षा के लिए साथ गए इंसपेक्टर मातादीन ने सुझाव दिया कि जनाब होटल में चलकर कुछ ले लेते हेंचार कदम भी न चले थे कि 'शेरे पंजाब ढाबा ' का बोर्ड नज़र आ गया
चारपाई पर बैठ कर दाल fry और तन्दूरी चिकन खाया ,लस्सी पी और तृप्त होकर अपने रॉकेट में वापस बैठ गए .
लौटकर जब अमेरिका आए तो रेडियो ,अन्य मीडिया के द्वारा उनकी सेहत का राज जानकर अमरीका के हर शहर में ढाबे खुलने लगे .
अब तो कहते हैं अन्तार्तिका में पंजाबी ढाबा खोलने के लिए पहली अर्जी संयुक्त राष्ट्र संघ में दाखिल हो गई है
देखा देखी हिंदुस्तान के बहुत से शहरों में भी ढाबे खुलने लगे हैं
बस यहाँ किसी अर्जी की ज़रूरत नहीं पड़ती तो चलें सबसे अच्छे ढाबों की सैर पर

Wednesday, May 21, 2008

मुर्थल के पराठे


दिल्ली की पराठे वाली गली से निराश हो कर
 अपनी राम कहानी दिल्ली वालों को सुनाई
वे बोले कि उससे अच्छे पराठे विक्रम होटल के सामने लाजपत नगर में मिलते हैं
औरों की सलाह थी कि आई टी ओ के सामने या मूलचंद फ्लाई ओवर के नीचे भी नज़र मार लें
पर ज्यादातर लोग इस बात पर सहमत थे कि सबसे अच्छे पराठे दिल्ली से ५० कि मी दूर मुर्थल में मिलेंगे
पर मुर्थल है कहाँ ,प
ता चला अमृतसर वाली जी टी रोड पर निकल जाइये सिंधु बॉर्डर क्रॉस कर हरियाणा में प्रवेश कीजिये
और करीब एक घंटे बाद बायीं ओर मुर्थल आएगा
तो चल पड़े पराठों की तलाश कि दूसरी कड़ी पर
दिल्ली से निकलना इतना आसान नहीं है ,इसलिए एक घंटे की तय यात्रा लम्बी हो गई
 कहीं मुर्थल लिखा तो नज़र नहीं आया पर ढाबों की एक लम्बी कतार दिखी
गुलशन,न्यू गुलशन, अरोड़ा ,पहलवान और मिलते जुलते नामों के ढाबे
सबके सामने टेंट कनात लगा कर सड़क तक विस्तार कर लिया गया था
ट्रक तो कम दिखे पर सैलानियों की कारें लगी थीं
उतर कर ढाबे की तरफ बढे कि किसी ने इशारा किया इधर आ जाईये
टेबल लगी थी ,मेज पर स्टील के बर्त्तन में पंचरंगा अचार ,हरी मिर्च और नमक , मिर्च रखे थे
वेटर से पूछा कि क्या मिलेगा ,जवाब में आलू,प्याज,मूली,गोभी,पनीर के पराठे गिना दिए गए
सोचा दो दो किस्म के मंगा लेते हैं फिर देखेंगे
आगे देखने कि नौबत ही नही आई
दो मिनट के अन्दर स्टील की थाली में दो विशालकाय गर्मागर्म तन्दूरी पराठे
 उनके ऊपर ढेर सारा सफ़ेद
मक्खन .साथ में ताजा जमाया हुआ दही .
पराठे तंदूर से निकले थे ,तोड़ने पर भाप निकल रही थी पर स्वाद लाजवाब था
आलू प्याज के पराठे मुझे अच्छे लगे पर साथी को मूली के पराठे रास आए
उनका कहना था कि अन्दर का भरवां मिश्रण पहले भुन कर फिर पराठे के अन्दर भर कर उसे तंदूर में सेंका गया है .
हो सकता है कि स्वाद का राज कुछ और रहा हो पर यात्रा सफल रही
उसके बाद कई बार मुर्थल से गुजरना हुआ और हर बार निगाह उधर मुड जाती थी
जबान को उस स्वाद का इंतजार रहता था पंजाब में बहुत सारी यात्राएं की पर वह स्वाद न मिला
हाँ एक बार जालंधर - चंडीगढ़ के रास्ते में नवां शहर के पास
 नहर के किनारे बने 'बाबे दा ढाबा' में तवे पर बने गोभी के पराठों की याद अभी भी है
छोटी सी जगह थी फ़रवरी का महीना था ,जल्दी नही थी ,
आराम से बैठ कर तवे पर बने खस्ता पराठे खाए दूध वाली चाय पी और तब बढे

Tuesday, May 20, 2008

पराठे वाली गली से निकल कर



नाम बड़े और दर्शन थोड़े
यह अनुभव हुआ ,अस्सी के दशक में पराठे वाली गली से गुजर कर
विश्वजीत प्रधान और भोजन भट्ट एक दिन गए पराठे वाली गली गए थे
(उन दिनों विश्वजीत फिल्मों में खलनायक नही बने थे और 'दस्ता' और 'जन नाट्य मंच' के नुक्कड़ नाटकों के रस्ते दिल्ली रंगमंच में पाँव ज़माने की कोशिश कर रहे थे )
मेरठ से चल कर बस अड्डा और फ़िर चाँदनी चौक के लिए फटफटिया ली.
वहाँ से पराठे वाली गली के लिए रिक्शा (मेट्रो ट्रेन अभी दिल्ली में नहीं उतरी थी )
भीड़ उन दिनों भी कम नहीं थी ,
बस जाड़े के खुशनुमा मौसम के सहारे. लोगों से पूछ कर नटराज कैफे के सामने वाली संकरी गली मी पहुँच गए.
गली के मुहाने पर कँवर जी भागीरथ्मल की नमकीन की दुकान है.
सोच कर आए थे कि ढेर सारी दुकाने होंगी , चहल पहल होगी ,तरह तरह जायके मिलेंगे
 पर यह क्या .ढाबे जैसी चार पांच दुकाने थी .
(१९८४ के दंगों के बाद चार पांच दुकाने ही बच पाई थीं ,वे भी शायद एक ही परिवार की थीं).
दुकानों में महान विभूतियों के चित्र लगे थे .नेहरूजी की तस्वीर याद आती है
पत्थर की सिल पर एक शख्स आटे की लोई में पीठी भर कर कढाई में घी डाल कर तल रहा था .
तंदूर के पराठे तो हमने सुने थे,
 तवे पर बने पराठे घर पर खाए ही थे पर कोयले की सिगरी पर कढाई में तले पराठे ,
वो भी दिल्ली शहर के बीचोबीच
अजीब नज़ारा था
सोचा कि दिल्ली के नज़ारे दूर से ही भले
पर दुकान पर बैठने के बाद मेनू देख कर थोडी तसल्ली हुई

हर जगह मिलने वाले आलू गोभी मूली के पराठों से हट कर
 २०-२५ तरह के पराठे उपलब्ध थेखुरचन पराठा ,लहसुन पराठा , मिक्स्ड पराठा , मशरूम पराठा , मेथी पराठा , पालक पराठा , गाजर पराठा , पनीर पराठा
मेवों से भरे पराठे याद हैं

परांठे के साथ मक्खन , इमली की चटनी , मूली शलगम का अचार , आलू की रसे वाली सब्जी मिली
पराठे करारे थे पर दिव्य नही ,खास अनुभूति नहीं हुई
इतनी लम्बी यात्रा के बाद पहुंचे थे पर विशेष आनंद नही मिला

उन दिनों तो खालिस शुद्ध घी मे बने पराठे खा भी लेते थे
पर अब तो पेट और सेहत दोनों ही इजाज़त नही देते
अगली बार मुर्थल के पराठे

Monday, May 12, 2008

असली हैदराबादी बिरयानी की खोज में


असली हैदराबादी बिरयानी की खोज में
वैसे तो यह मिथ अब तक टूट जाना चाहिए की दक्षिण में बसने वाले अधिकतर शाकाहारी होते हैं
सच्चाई इसके उलट है.
चारो प्रदेशों में मांस के विविध व्यंजन बनते है शौक से परोसे औरखाए जाते हैं
दरअसल तमिल जन जीवन और उससे जुड़े समाज और माहौल पर
अल्पसंख्यक ब्राह्मण वर्ग का इतना ज्यादा प्रभाव रहा है
कि हर शख्स दक्षिण को शाकाहारी भोजन की कार्यस्थली समझता है.
गावों तक में महाभोज या सामाजिक उत्सवों में बिना नान वेज खाने के तृप्ति नही होती
कर्णाटक और आंध्र प्रदेश में मटन बिरयानी की वही महत्ता है
 जो और जगहों पर पूरी/कचौरी आलू /कद्दू की सब्जी की दावत की है.
बिरयानी शब्द शायद फारसी के beryā(n) (بریان) से आया है,जिसका अर्थ है भुना /तला हुआ
संभवतः मुग़लों के साथ पश्चिम एशिया से आए तोहफों में बिरयानी का भी शुमार होना चाहिए
जैसे जैसे मुग़ल सल्तनत के कदम बढे ,हिंदुस्तान के हर हिस्से में बिरयानी की खुशबू फ़ैल गई.
अब तो लखनऊ , भोपाल से लेकर केरल के मोपलाह लोग भी बिरयानी पर अपना कापी राइट मानते हैं
लेकिन जैसे किलों में चित्तोड़ गढ़ का नाम है, वैसे ही हैदराबादी बिरयानी ज्यादा मशहूर है.
हैदराबादी बिरयानी दो तरीके से बनती है कच्ची बिरयानी में कच्चे गोश्त की अखनी के साथ चावल और मसाले हांडी में सील कर दिए जाते हैं पकने के लिए,
जबकि पक्की बिरयानी में तैयार मीत और आधे उबले चावलों कर एक के ऊपर एक परत लगाई जाती है .
बिरयानी को अक्सर मिर्ची के सालन की तरी और रायता के साथ परसते हैं .
लेकिन असली हैदराबादी बिरयानी मिलेगी कहाँ
चलें खोज में...

Friday, May 9, 2008

मुट्टा डोसा



मुट्टा डोसा
वैसे तो आपने मसाला डोसा और उत्तपम खाया ही होगा .
शायद पनीर डोसा या कीमा डोसा चखने का अवसर भी मिला हो,
पर मुट्टा डोसा ,यह क्या बला है .
किसी कुक बुक या टी.वी .शो में भी इसका जिक्र नहीं आता है.
दरअसल मुट्टा डोसा (माने अंडा डोसा) जनता जनार्दन का डोसा है,
 जो सिर्फ़ गलिओं और बाजारों में ठेलों पर बिकता है.
 सस्ता .गुणकारी स्वादिष्ट स्ट्रीट फ़ूड.
अगर किसी शहर की आत्मा
उसके गली कुंचों में बिकने वाले ठेले/खोमचे के चटपटे खाने में बसती है
तो मुट्टा डोसा बंगलोर/मद्रास का खाने का बादशाह है.
बंगलोर में बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन के बीच का मजेस्टिक इलाका हो
या शिवाजीनगर -इन्फंट्री रोड के पास की सड़कें ,यहाँ मुट्टा डोसा ही चलता है.
रात में बस से उतरने वाले मुसाफिर हों
 या सिनेमा का आखिरी शो देखकर निकले दर्शक. भू
खी आत्माओं का यही सहारा है.
रात मे ग्यारह बजे के बाद किसी ठेले के आसपास भीड़ देखें,
तलने की खुशबू ख़ुद ब ख़ुद आपको खींच ले जायेगी.
अनवरत जलती अंगीठी पर काले पड़ चुके तवे पर पानी एक बड़ा चमच तेल डाला जाएगा
तेल गरम होने पर एक कटोरी डोसा मिश्रण ,दोसे की शक्ल में फैलाया जाएगा
फिर असली कारीगरी शुरू होगी.
बगल में रखे अंडे की ट्रे से एक अंडा निकला जायेगा
और कलाई की एक ही घुमाव में उसे दोसे के ऊपर फोड़ कर ,
उसे कटे प्याज.धनिया ,मिर्च से ढक देंगे .
अब बारी है गुप्त मसाले को छिड़कने कीडोसा पलटा जाएगा .
आप बेताब होंगे .चटनी के साथ प्लेट में आपको परस दिया.
चख कर बताइए ,कैसा है.
विधि
१ कप डोसा मिश्रण *१ अंडा
कटी हुई प्याज.धनिया, हरी मिर्चपिसा जीरा ,मिर्च,नमक
१ चमच तेल पहले नॉन स्टिक तवे को आधी कटी प्याज से पोंछ कर साफ कर लें
फ़िर १/२ चमच तेल डालकर गरम होने देंअब तवे पर डोसा मिश्रण फैलायें
 १ कटोरी में अंडे को फेंट कर मसाले व कटी हुई प्याज.धनिया, हरी मिर्च के साथ मिला लें इसे अब दोसे के ऊपर पलट दें १/२चमच् तेल साइड से डालें
१ मिनट बाद दोसे को तवे पर पलट कर अंडे के पक जाने तक सेंके चटनी के साथ आनंद से खाएं


चित्र साभार
*डोसा मिश्रण आजकल महानगरों में बड़ी दुकानों में आसानी से मिल जाता हैघर में बनाना हो तो साधारण चावल और उरद की दाल को ३:१ के अनुपात मे रात भर भिगो कर सुबह पींस लेंचंडीगढ़ में ४७ सेक्टर के बाज़ार में सिंगला स्टोर्स और जैन भाई की दुकान पर तैयार मिश्रण मिल जाता है

Thursday, May 8, 2008

अक्की रोटी


मंगलोर जाकर भी न तो नीर डोसा खाने को मिला
न अक्की रोटी .
कोरी रोटी नामका रेस्तौरांत जरुर दिखा.
नैवेद्यम रेस्तरां में रागी रोटी थाली में खाने को मिली
पर उसके ऊपर घी देखकर मज़ा किरकिरा हो गया.
रागी मुद्डे (रागी के आटे के बने लड्डू जैसे गोले) जिसे वेज/नानवेज करी या रसम के साथ खाते हैं,
पूर्व प्रधान मंत्री देवेगौडा जी का प्रिया अल्पाहार है.
लगा मंगलोर की यात्रा बेकार हो
गई संगिनी ने कहा निराश क्यों होते हो ,घर जाकर अक्की रोटी बना दूंगी
अक्की रोटी -विधि
2 कप चावल का आता१/२ कप घिसा हुआ ताजा नारियल बारीक़ कटी प्याज ,हरी मिर्च ,धनिया,नमक अंदाज से
(चाहें तो गाजर घिस लें)१/२ कप पानीउपयोग हो रहा तेल -आटे में सब सामान मिला कर थोड़े कुनकुने पानी में गूँथ लें हथेली में जरा सा तेल लगाकर बड़े नीम्बू/संतरे की साइज़ की लोई लेंगरम नॉन स्टिक तवे पर जरा सा तेल फैला लें उसके ऊपर लोई को हाथ से रोटी की शक्ल देकर फैला दें रोटी के ऊपर जरा सा तेल चुपड देंढक्कन से ढँक कर २-३ मिनट धीमी आंच पर पकाएं जबतक रंग खुशनुमा क्रीम रंग का हो जाए अब ढक्कन हटा कर पलट कट ३-४ मिनट तक सेंके कुरकरा होने तक
अक्की रोटी  तैयार है .
लाल मिर्च लहसुन धनिया की चटनी के साथ खाएं



*कोरी रोटी बुन्त समुदाय की चावल के आटे से बनी पापड़ जैसी रोटी को कहते हैं ,
जिसके टुकड़े चिकन करी में डुबोकर खाने का रिवाज है.
*रागी रोटी -रागी आटे में कटी प्याज,हरी मिर्च मिलाकर बनने वाली रोटी है
 जिसे कर्णाटक में नाश्ते में शौक से खाते हैं,गुण भी गाते हैं

Wednesday, May 7, 2008

कल्याण मंडप के दूसरे भाग में मेज कुर्सियों पर पंगत जमी .
परोसनेवालों ने पहले सफ़ेद कागज का लंबा मेजपोश बिछाया,
फिर उसके ऊपर पानी से धुले केले के पत्ते बिछाए गए.
बाल्टियांभर कर लोग परोसने लगे उत्सुकता थी
देखें यहाँ क्या मिलेगा.
शायद बंगलोर-मैसूर क्षेत्र की तरह नमक, अचार ,भिगोई हुई मुंग की दल का सलाद से शुरुआत हो.
फ़िर बिसेबेल्ले भात ,चावल, संभार,रसम और अंत में दही चावल और मिठाई .
लेकिन यहाँ तो कुछ और ही माजरा था.
रुमाली रोटी ,पुलाव , सफ़ेद चने की सब्जी ,लगा शायद पनीर बटर मसाला भी परोसा जाएगा .
अब दिल्ली दूर नही वाला दृश्य था .
उडुपी -पंजाब का संगम होने सा लगा.
फ़िर दृश्य पलटा. जो गीली सब्जी अब परोसी गई
 वह नारियल के रसे में  पकी कटहल की तरकारी थी.
पड़ोसी केरल का प्रभाव दिखा कुद्रुन की सूखी सब्जी और मसालेदार बीन्स की तरकारी
साथ में केरल शैली के उबले चावल.
 कुछ कुछ स्वाद बदला.मंगलोरी स्वाद की साम्भर और दही भी परसे गए.
साथ में अचार.अंत में मिठाई.
पहले इदिअप्पम (सेवैयं जैसा) के ऊपर मीठी दूध की खीर.
लेकिन अभी कुछ और बाकी था
पूर्रनपोली के साथ केले की मीठी रसे वाली खीर.
तृप्ति का अहसास हो रहा था .आइसक्रीम की और देखा भी नहीं.
अब सच्चा आशीर्वाद दूल्हा दुल्हन के लिए निकला .मंगलमय हो इनका जीवन...


अगली बारी अक्की रोटी
अब पहुंचे शादी के मंडप में.
आयोजन गोकर्न्नाथ मन्दिर परिसर में बने कल्याण मंडप मैं किया गया था
ट्रेन के देर से आने से ९.२३ बजे का मुहूर्त तो बीत चुका था ,
यानि वधू के गले में 'ताली'/मंगलसूत्र पहनने की घड़ी.
अब समय था मंच पर जाकर दूल्हा दुल्हिन को बधाई देने का.
निमंत्रण पत्र में मनाही लिखी थी 'उपहार न लायें, फूल भी नहीं '.
अचरज इस बात का हुआ की इस बात का अक्षरशः पालन हो रहा था.
हर व्यक्ति शांतिपूर्वक खली हाथ मंच पर जाकर अक्षत/रोली से नव दम्पति को आशीर्वाद दे रहा था .
शालीन व्यवस्था को देखर दिल खुश हो गया .
बारी थी विवाह के भोजन की .

Tuesday, May 6, 2008

मंगलोर की ओर

मौका मिला मंगलोर जाने का ,
अवसर था सहयोगी के बेटे के विवाह का
विदेश में बसा डॉक्टर बेटा कंप्यूटर इंजिनियर लड़की ब्याहने देस आया
था सो चल पड़े समुद्र तट पर बसे सुरम्य क्षेत्र की ओर
भोजन भट्ट की छिपी इच्छा थी की कोंकण प्रदेश का विवाह भोज जीमने की
देखें यहाँ क्या मिलता है शादी के पकवानों मेंआख़िर मंगलोर उदिपी के पास है ,
जहाँ के रेस्तौरन्ट्स से सारे देश ने इडली, डोसा खाना सीखा है
 क्या पता नीर डोसा, अक्की रोटी ,कोरी रोटी जैसे नए व्यंजन खाने का मौका मिले
पन्द्रह घंटे की ट्रेन यात्रा के बाद मिला इडली ,वडा का नाश्ता ,साथ में नारियल की चटनी और साम्भर,
अंत में गरम फिल्टर काफी .
पहला परिचय अच्छा था पर विशिष्ट नहीं.दक्षिण में तो हर जगह यह नाश्ता मिलता है,
बदलता है तो चटनी और साम्भर का स्वाद.
चटनी में कहीं ताजा घिसे नारियल का जायका मिलता है तो कहीं चने की दाल का पुट ज्यादा होता है
 पर बघार अवश्य राइ या करी पत्ता से लगाई जाती है .
 साम्भर में मूली या स्थानीय सब्जी मिल जाती है ,drumstick अक्सर
 तो नाश्ता अच्छा था
अगर पंकज मिश्रा 'बटर चिकन इन लुधिआना' में इडली ,वडा के पारंपरिक दक्षिण भारतीय नाश्ते को
शाकाहारी नाश्ते की सबसे अच्छी मिसाल बतातें हैं ,तो ग़लत नही कहते.

Monday, May 5, 2008

भोजन भट्ट की रसोई

पहली नज़र में यह भले ही खाए हुए/अघाये हुए जने का शब्द विलास लगे पर अच्छा खाना भी अच्छे जीवन की चाहत के साथ जुडा है खाने का मिजाज बिगड़े तो ज़िंदगी का हिसाब बिगड़ते देर नहीं लगतीरहा सवाल उसके लिए अर्थ जुगाड़ने का तो ऋषि जन कह चुके हैं " रिणं कृत्वा घृतं पिबेत "तो शुरू करें भोजन भट्ट की रसोईपहली यात्रा मंगलोर की ओर