Wednesday, May 7, 2008

अब पहुंचे शादी के मंडप में.
आयोजन गोकर्न्नाथ मन्दिर परिसर में बने कल्याण मंडप मैं किया गया था
ट्रेन के देर से आने से ९.२३ बजे का मुहूर्त तो बीत चुका था ,
यानि वधू के गले में 'ताली'/मंगलसूत्र पहनने की घड़ी.
अब समय था मंच पर जाकर दूल्हा दुल्हिन को बधाई देने का.
निमंत्रण पत्र में मनाही लिखी थी 'उपहार न लायें, फूल भी नहीं '.
अचरज इस बात का हुआ की इस बात का अक्षरशः पालन हो रहा था.
हर व्यक्ति शांतिपूर्वक खली हाथ मंच पर जाकर अक्षत/रोली से नव दम्पति को आशीर्वाद दे रहा था .
शालीन व्यवस्था को देखर दिल खुश हो गया .
बारी थी विवाह के भोजन की .

1 comment:

Anonymous said...

वाकई शानदार काम है.भोजन मे मुझे भी रोचि है,सिर्फ खाने मे नहीं,इसके भूगोल, इतिहास समाजशास्त्र राजनीति के बारे मे जानने और पठ ने की भी,खूब पठ्ता भी रहता हूं, यह स्वादिष्ट ब्लॉग पठ कर मन तृप्त हुआ.
ध्न्यवाद्