Saturday, September 13, 2008
कोटाडा चाय
जहाँ दुनिया में सैकड़ो गम हों वहां कोई चाय की प्याली का रोना शुरू कर दे तो उसे क्या कहें
लेकिन सुबह के वक्त जिस स्वाद की चाय की आदत पड़ जाए ,
उसके न मिलने पर पूरा दिन कुछ बेरंग सा लगता है
अपने साथ बी ऐसा हुआ
जब से दक्षिण भारत में रहना शुरू किया ,काफी जोर मशक्कत के बाद सही चाय का जायका बन पाया
'रेड लेबल' कड़क लगती थी ,ग्रीन लेबल महंगी थी
दार्जिलिंग -आसाम की चाय की आदत नही थी
ऐसे में एक पत्ती मिली जो स्वाद में हलकी थी , रंग हल्का पीला था और एक कप पीने के बाद दूसरे की इच्छा होती थी कुछ कुछ माल्ट जैसी
निलगिरी पहाडों के कोटाडा चाय बगान की कोटाडा चाय
निलगिरी की चाय पत्ती असाम और दार्जिलिंग के बागानों के मुकाबले कम बिकती है
दाम भी कम हैं ,आम जनता इसे पीती है ,सो नफासत नही जुड़ी हुई है
कोटाडा की लम्बी पत्ती वाली चाय की जो आदत पड़ी तो हर ट्रान्सफर पर यह खोज बनी रहती
कि किसी दुकान में शायद मिल जाए
बंगलोर में तो मिल जाती थी पर पिछले तीन महीने से यहाँ भी मुश्किल से मिल रही है
शायद निलगिरी के चाय बागानों की खस्ता हालत के चलते वहां तालाबंदी हो गई हो
अफीम की लडाई के बाद जब अंग्रेजों को चीन से चाय मिलने में मुश्किल हुई तो हिंदुस्तान में चाय बागानों की नींव डाली गई
दुनिया की मंडी में निलगिरी की चाय के दामों में मंदी चल रही है
चाय बगान बंद हो रहे हैं
कही ऐसा तो नही कि टोडा और ईरुला जनजातियों के इलाके के इस चाय बगान में Stanes Amalgamated Company ने लाक आउट घोषित कर दिया है
चाय की चुस्की में अब वह स्वाद नही मिलता
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