
भोजन पत्रिकाएं
सरिता , गृहशोभा, गृहलक्ष्मी के 'भोजन विशेषांक ' अगर छोड़ दें तो हिन्दी
में भोजन पर आधारित पत्रिकाओं का अकाल सा है
हिन्दी पट्टी ने भोजन -नारी-ज़िम्मेदारी का ऐसा प्रमेय बना रखा है
कि अख़बार -रविवार संस्करण तथा पत्रिकाओं ने भोजन को नारी पन्नों पर ही
समेट रखा है
आख़िर कवि ने कहा था 'बनिए सीता ,पढिये गीता ,
फ़िर बन किसी की परिणीता ,फूंकिए चूल्हा ...
ऐसे में भोजन जैसे विषय पर किसी specialist पत्रिका की गुंजाईश नज़र नही आती
वैसे देश में और कई भोजन पत्रिकाएं चल रहीं है बरसो से
इन्हें पाठकों तथा advertisers दोनों का प्रश्रय प्राप्त है
बम्बई से निकलने वाली Uppercrust सबसे आगे है
Busybee द्वारा शुरू की यह पत्रिका अब उनकी बेटी फरजाना कोंत्राक्टर संपादित करती हैं
नाम के अनुरूप ही पत्रिका उच्च वर्ग की जीवन शैली के व्यंजन और रस रंजन के द्रव्य पदार्थों पर ध्यान रखती है
लेकिन है इतनी अच्छी कि हर ग्राहक इसे साज संभाल कर रखता है
मैंने कई बार रद्दी और पुरानी पत्रिकाएं रखने वाली दुकानों पर पुराने अंक खोजने की कोशिश की
पर नाकामयाब रहा
तरला दलाल की 'कुक बुक ' पत्रिका उनके उत्पादों के विज्ञापन के लिए निकली लगती है
बिज़नस इंडिया ग्रुप की 'फ़ूड मैगजीन' ज़ल्दी बंद हो गई
(मेरा एक साल का सुब्स्क्रिप्शन भी पूरा नहीं हो पाया था )
पर पत्रिका अच्छी थी ,गुजरात के शहरों के थाली भोजनालयों का वर्णन आज भी याद है
आजकल बंगलोर से निकलने वाली'फ़ूड लवर्स गाइड' पर दिल अटका है
ग्लोसी कागज पर छपने वाली इस दुमाही पत्रिका में स्थानीय रेस्तारौन्तों के बारे में होता है
पुराने शौकीन लोगों की रेसिपेस छापी जातीं हैं
गली मोहल्लों के जायके का बयान रहता है
हमारे पूरे परिवार को इसके नए अंक का इंतज़ार रहता है