Wednesday, December 31, 2008


नया साल मुबारक हो



सबकी थाली में खाना हो

हर रसोई में चूल्हा जलता रहे

किसी की जेब खाली न हो

खुशी और पकवान सबके नसीब में हो

इसी चाहत के साथ

भोजन भट्ट

Saturday, December 27, 2008



भूखी महाशक्ति -सड़ता अनाज
पिछली एक पोस्ट में पंजाब में सरकारी खरीद के गेंहू के खुले आसमान के नीचे सड़ने का ज़िक्र किया था
चंडीगढ़ से प्रकाशित 'ट्रिब्यून' में चितलीन सेठी ने लिखा है
सरहिंद जिले में सड़ता यह अनाज पंजाब कृषि उद्योग निगम द्वारा हजारों टन कीखरीद का है और इस मौसम में खुले में सड़ गया है
राज्य में कुछ स्थानों पर इस वर्ष मई में ख़रीदा अनाज यह खुले में चबूतरों पर रखा हुआ था
कोटला भाई के गांव और डेरा मीर गांव में हजारों टन खरीद में कीडे लग गए हैं .
पंजाब राज्य में लाखों टन की खरीद, परिवहन और गेहूं के भंडारण के अभाव में नष्ट हो जायेगी .
कोटला भाई के गाँव में 16,000 टन गेहूं खुले में रखा है
इस सत्र में (2008-2009) की खरीद किया गेहूं चबूतरे पर एक लकड़ी के बक्से में stacked हैं.
तिरपाल से पूरी तरह ढँक न पाने से दीमक लग गई है
डेरा मीरा मीर गांव में गेहूं की 11,000 टन भंडारित है.
इस गेहूं का एक बड़ा हिस्सा पिछले मौसम में खरीदा था.
इस में से अधिकांश गेहूं का ताजा स्टॉक कीड़े (susri) और कवक से पीड़ित है.
इसके अलावा कीटनाशकों के साथ समय पर इलाज नहीं किया गया.

एमडी, पंजाब कृषि उद्योग निगम, एस के संधू ने कहा कि अधिकारियों की एक टीम को गांवों में कल नुकसान की सीमा की रिपोर्ट के लिए भेजा जाएगा. "मामले में जिम्मेदारी तय होगी और कार्रवाई होगी " उन्होंने कहा.
आगामी महीनों में इस समस्या के और बढ़ने की सम्भावना है
यह हाल है महाशक्ति बनने का सपना देखने वाले देश का
जहाँ आधी से ज़्यादा जनता बीस रुपये से कम में जीने पर मजबूर है
वैसे भी बीस रुपये में एक किलो आटा तो नहीं मिलता

Monday, December 1, 2008

आज भोजन भट्ट की रसोई बंद है
चूल्हा चौका उल्टा है
दिल उखड गया है
न खाने के बारे में सोचने की इच्छा होती है
न किसी होटल रेस्तरां के बारे में लिखने की
मुंबई के इन विनाशकारी हमलों से भोजन व्यापार का बुरा हाल हो गया है
मीडिया से ओबेरॉय /ताज/trident होटलों के कर्मचारियों के काम के दौरान शहीद हो जाने के समाचार मिले हैं
उनकी स्मृति को नमन
आतंकवादियों द्वारा शेफ्स से sandwich बनाने को कहना और फ़िर खाने के बाद उन्हें लाइन में खड़ा कर गोली मारने की भी ख़बर मिली है
अपने फ़र्ज़ को निभाते शहीद हुए कर्मियों को प्रणाम
CST रेल स्टेशन पर कैंटीन चलाने वाले घायल मालिक और उनके सहयोगियों के जल्द काम पर वापस आने की कामना के साथ
लेकिन टाईम्स ऑफ़ India समूह की सबीना सहगल सैकिया तो अब कभी वापस नहीं आयेगीं
सत्रह साल पहले भोजन भट्ट की परम्परा की नींव डालने वाली संपादिका के यादें ही उनके सहकर्मियों व् पाठकों के पास बाकी बचेंगीं
भोजन भट्ट का सलाम

Thursday, November 13, 2008



भोजन पत्रिकाएं
सरिता , गृहशोभा, गृहलक्ष्मी के 'भोजन विशेषांक ' अगर छोड़ दें तो हिन्दी
में भोजन पर आधारित पत्रिकाओं का अकाल सा है
हिन्दी पट्टी ने भोजन -नारी-ज़िम्मेदारी का ऐसा प्रमेय बना रखा है
कि अख़बार -रविवार संस्करण तथा पत्रिकाओं ने भोजन को नारी पन्नों पर ही
समेट रखा है
आख़िर कवि ने कहा था 'बनिए सीता ,पढिये गीता ,
फ़िर बन किसी की परिणीता ,फूंकिए चूल्हा ...
ऐसे में भोजन जैसे विषय पर किसी specialist पत्रिका की गुंजाईश नज़र नही आती
वैसे देश में और कई भोजन पत्रिकाएं चल रहीं है बरसो से
इन्हें पाठकों तथा advertisers दोनों का प्रश्रय प्राप्त है
बम्बई से निकलने वाली Uppercrust सबसे आगे है
Busybee द्वारा शुरू की यह पत्रिका अब उनकी बेटी फरजाना कोंत्राक्टर संपादित करती हैं
नाम के अनुरूप ही पत्रिका उच्च वर्ग की जीवन शैली के व्यंजन और रस रंजन के द्रव्य पदार्थों पर ध्यान रखती है
लेकिन है इतनी अच्छी कि हर ग्राहक इसे साज संभाल कर रखता है
मैंने कई बार रद्दी और पुरानी पत्रिकाएं रखने वाली दुकानों पर पुराने अंक खोजने की कोशिश की
पर नाकामयाब रहा
तरला दलाल की 'कुक बुक ' पत्रिका उनके उत्पादों के विज्ञापन के लिए निकली लगती है
बिज़नस इंडिया ग्रुप की 'फ़ूड मैगजीन' ज़ल्दी बंद हो गई
(मेरा एक साल का सुब्स्क्रिप्शन भी पूरा नहीं हो पाया था )
पर पत्रिका अच्छी थी ,गुजरात के शहरों के थाली भोजनालयों का वर्णन आज भी याद है
आजकल बंगलोर से निकलने वाली'फ़ूड लवर्स गाइड' पर दिल अटका है
ग्लोसी कागज पर छपने वाली इस दुमाही पत्रिका में स्थानीय रेस्तारौन्तों के बारे में होता है
पुराने शौकीन लोगों की रेसिपेस छापी जातीं हैं
गली मोहल्लों के जायके का बयान रहता है
हमारे पूरे परिवार को इसके नए अंक का इंतज़ार रहता है

Wednesday, November 5, 2008



दफ्तर की कैंटीन
नौकरी करते बीस साल हो गए हैं
सरकारी दफ्तरों में खाने का अनुभव ख़ास नही रहा है
अधिकतर लोग घर से डब्बा लाते हैं
सो उनकी ज़रूरत चाय/हलके जलपान से पूरी हो जाती है
समोसा,लड्डू और ब्रेड पकोडा से आगे ज्यादातर कैंटीन नहीं बढ़ पाईं हैं
खाने के समय पनीली दाल और सुबह की बनी ठंडी सब्जी वाली थाली पर इनकी सुई रुक गई है
दिल्ली ,जालंधर,नागपुर और चंडीगढ़ के दफ्तरों की कैंटीन गाहे बगाहे आजमाई गयीं
पर कुछ बात बनी नहीं
पर बंगलोर के दफ्तर का हिसाब कुछ और है
यहाँ खाना न केवल ताज़ा और स्वाद भरा है
पर इतना सस्ता है कि आस पड़ोस के दफ्तरों के लोग भी यहीं खाना पसंद करते हैं
नीले सफारी सूट की युनिफोर्म पहने वेटर किसी भी छोटे रेस्तरां को मात दे सकते हैं
सफाई और पैकिंग की व्यवस्था भी देखने लायक है
सुबह नाश्ते में गरम गर्म इडली ,उपमा और चौ चौ भात (उपमा और केसरी भात की मिली जुली डिश ) मिलता है
नारियल और चने की दाल की चटनी के साथ
और साथ में फिल्टर काफ़ी
कीमत बस दस -बारह रुपये
ग्यारह बजे के बाद डोसा मिलने लगता है
हर दिन अलग अलग
मसाला डोसा, उत्थपम , रागी डोसा और सेट डोसा सप्ताह के दिनों के हिसाब से मिलतें हैं
अपने खास पल्या(सब्जी) और चटनी के साथ
लंच टाइम में चावल की डिश और कर्ड राइस मिलतें हैं
पुलाव,वांगी भात, टोमाटो राइस ,नारियल राइस, बिसिबेल्ले भात का हमें इंतज़ार रहता है
साथ में भज्जी या दाल वड़ा मंगा लीजिये
भर पेट खाना आठ- बारह रुपये में मिल जाएगा
हर डिश चार रुपये की है और पर्याप्त मात्रा में मिलती हैं
शाम को साउथ इंडियन स्नाक्स और बादाम मिल्क
कुछ लोग तो शाम का खाना भी पैक कर ले जाते दिखें हैं
एक महीने से हम लोग हर रोज कैंटीन में ही खा कर तृप्त हैं मुदित हैं
ऐसी भी हो सकती है कैंटीन

Wednesday, October 22, 2008





आहा ग्राम्य जीवन
शहरी ज़िन्दगी की उहा पोह से त्रस्त हों
और शहर के आस पास ही ग्रामीण माहौल में पारंपरिक खाने का स्वाद लेना हो तो कहाँ जायें
अहमदाबाद में रहते हों तो 'विशाला'
उदयपुर में 'आपकी ढाणी'
जयपुर में 'चोखी ढाणी'
एक सप्ताह में भ्रमण के दौरान इन तीन विख्यात अड्डों पर जाने का अवसर मिला
अनुभव मिश्रित रहा
तीनो जगहों का फार्मूला एक जैसा है
अपने क्षेत्र की पारंपरिक थाली ,पारम्परिक तरीके से परोसी जाती है
ज़मीन पर बैठ कर खाने का आनंद उठाइए
स्सथ में कुछ स्संस्कृतिक कार्यक्रम की बानगी भी मिलती है
सबसे पहले 'विशाला'
अहमदाबाद बम्बई हाई वे पर वसना के पास बने इस रिसॉर्ट नुमा होटल में ३१ साल से गुजराती थाली मिलती है
आपने भी अन्य महानगरों में गुजरती थाली खायी होगी पर विश्वास मानिये की यहाँ का स्वाद कुछ अलग है
इसका कारण अपने खेतों में उगाई सब्जी हो सकती है, बाग़ के बीच खटिया पर बैठ कर पत्तल कसोरे में खाना हो सकता है ,गरमजोशी से खिलाने वालों का सलीका हो सकता है
हम लोग सात बजे शाम को पहुँच गए थे ,एक घंटे तक कठपुतली का नाच देखा ,कर्मचारियों का गरबा देखा
सोमवार होने के कारण बर्तनों का म्यूज़ियम बंद था निराशा हुई
मगर उत्तम भोजन ने भरपाई कर दी
पहले तो पत्तल पर पापड़ , हलवा, खांडवी, जलेबी दिखी ,पीने को छास आई
फ़िर ताज़ी कटी सब्जियों का सलाद ,फ़िर मिटटी के छोटे कसोरे में धनिया,लहसुन की चटनी ,माखन
आलू शाक ,भरता, फली की सब्जी ,वाल (बीन्स) की सब्जी -कठोरे
चार तरह की रोटियां -चपाती,भाकरी, बाजरा रोटला और पूरी
आख़िर में खिचडी के साथ गुराती कढ़ी
स्वाद थोड़ा मीठा था पर आनंद भरपूर
३७९ रुपये फी शख्स का रेट ज़्यादा लगा पर अनुभव अवर्णीय था
स्टाफ का उत्साह देखने लायक था
बच्चों के पसंद का काफी सामान था
आप भी पधारें

Wednesday, September 17, 2008



बनी रहे इनकी जोड़ी
भारत में टी.वी . पर कुकरी शो का एक बॉक्स ऑफिस फार्मूला है
स्टूडियो के सजे धजे किचेन में एक नामी शेफ और महिला होस्ट अवतरित होती हैं
हमेशा मुस्कराते शेफ साहब २ या ३ नई पुरानी रेसिपेस को २०-२२ मिनट के समय में बनाते हैं
महिला सहकर्मी के लिए खास कुछ करने को नहीं होता ,सो वह बचकाने सवाल पूछती हैं
अंत में दर्शकों को कुछ tips दी जाती हैं जिससे वे अपनों घरों में इसे बना सकें
पूरा लहजा दूर दर्शन और रेडियो के गृह लक्ष्मी कार्यक्रमों की याद दिलाता है
इस विधा के सम्राट हैं जी टी.वी. के खाना खजाना कार्यक्रम के संजीव कपूर
उनकी तरह स्टार टी.व्. पर मिर्च मसाला पेश करते थे राकेश सेठी
अब तो शायद हर चैनल पर एक कुकरी शो पेश करना अनिवार्य है
एन .डी. टीवी. के जायका प्रोग्राम में विनोद दुआ अपने खास अंदाज में अलग अलग शहरों के ख़ास व्यंजनों का लुत्फ़ उठाते नज़र आतें हैं हैं
पर उनके गुरु गंभीर व्यक्तित्व में हलके फुल्के कमेंट्स की जगह नहीं दिखती
टी.वी. के कुकरी शो की इस एकरसता को तोडा है एन .डी. टीवी. के गुड टाईम्स चैनल के HIGHWAY ON MY PLATE प्रोग्राम ने
मंगल की रात में दस बजे इसे पेश करते हैं अच्छे खाने के दो असली शौकीन
रोंकी सिंह नान वेज खाना पसंद करते हैं जबकि इनके साथी मयूर शर्मा खालिस शाकाहारी हैं
दोनों भारत यात्रा पर निकले हैं ,जिसमे रस्ते के ढाबे इनके पड़ाव हैं
हर इलाके के ढाबों के खास व्यंजन ये शौक से खाते हैं ,फ़िर विस्तार से वर्णन करते हैं
अपने खास मजाकिया अंदाज में
इन दोनों की केमिस्ट्री देखते बनती है
कहीं भी किसी जगह रुक जातें हैं ,बेत्कलुफफी से बैठ कर कहने का लुत्फ़ उठातें हैं
आपस में हँसी मजाक चलता रहता है
बिना किसी ढोंग और बनावटीपन से
हर एपिसोड देखने लायक होता है
कश्मीर में वाजवान की खोज से लेकर आंध्र प्रदेश में केले के पत्ते पर आंध्र मील्स खाते हुए इन्हे देखना एक अलग अनुभव है
तिरुपति के बाज़ार में दक्षिण भारतीय शैली में लुंगी पहनने की कोशिश देखने वाली थी
आजकल ये लोग केरल का दृश्य दिखा रहें हैं
बनी रहे इनकी जोड़ी

Monday, September 15, 2008




थत्ते इडली
तमिलनाडु में छोटी कांजीवरम इडली मिलती हैं
हलके पीले रंग की एक प्लेट में ६-८ ,साम्बर चटनी के साथ
कई लोग इसे बटन इडली भी कहते हैं
कर्नाटक में हासन -मैसूर क्षेत्र में हथेली की साइज़ की इडली मिलती है
एक प्लेट में एक ही मिलती है पर नाश्ते के लिए पर्याप्त
इसे पारंपरिक इडली कुकर की बजाय स्टील प्लेट या बांस की टोकरी में कपड़ा रख कर पकाते हैं
स्वाद अति उत्तम
हाल में बंगलोर पूना मार्ग पर तुमकुर जिले में जाने का अवसर मिला
तुमकुर सिद्दगंगा मठ और देव्रायण दुर्ग पर बने नरसिम्हा स्वामी मंदिरों के लिए प्रसिद्द है
वहां नाश्ते के समय पूछ ताछ से दो होटलों का पता चला
पवित्रा रेस्तौरांत और रविदर्शन
बस स्टैंड से मठ जाने वाले रस्ते के करीब
पवित्रा ज्यादा पुराना और मशहूर है
सुबह दस बजे थत्ते इडली खाने वालों की लाइन लगी थी
हमने भी थत्ते इडली और वड़ा का आर्डर दिया
स्टील की प्लेट में केले का पत्ता ,उसके ऊपर प्लेट की साइज़ की एक इडली,और साइड में वड़ा
इडली के ऊपर घर का बिलोया माखन था
साथ में गाढ़ी चटनी चने की दाल की
इडली बहुत मुलायम थी ,साम्भर सब्जी से भरी थी ,
गाढ़ी होने की वजह से सब्जी की तरह लग रह थी
साथ में एक मसाला डोसा भी आर्डर किया ,वह भी करारा और स्वाद से भरा था
आनंद का एहसास हुआ
पवित्रा रेस्तौरांत के मालिक उदय कुमार ने बताया की उनके ग्राहक इडली दिल्ली तक ले जाते हैं
हवाई जहाज से
ये थत्ते इडली वास्तव में ले जाने लायक है

Saturday, September 13, 2008





कोटाडा चाय
जहाँ दुनिया में सैकड़ो गम हों वहां कोई चाय की प्याली का रोना शुरू कर दे तो उसे क्या कहें
लेकिन सुबह के वक्त जिस स्वाद की चाय की आदत पड़ जाए ,
उसके न मिलने पर पूरा दिन कुछ बेरंग सा लगता है
अपने साथ बी ऐसा हुआ
जब से दक्षिण भारत में रहना शुरू किया ,काफी जोर मशक्कत के बाद सही चाय का जायका बन पाया
'रेड लेबल' कड़क लगती थी ,ग्रीन लेबल महंगी थी
दार्जिलिंग -आसाम की चाय की आदत नही थी
ऐसे में एक पत्ती मिली जो स्वाद में हलकी थी , रंग हल्का पीला था और एक कप पीने के बाद दूसरे की इच्छा होती थी कुछ कुछ माल्ट जैसी
निलगिरी पहाडों के कोटाडा चाय बगान की कोटाडा चाय
निलगिरी की चाय पत्ती असाम और दार्जिलिंग के बागानों के मुकाबले कम बिकती है
दाम भी कम हैं ,आम जनता इसे पीती है ,सो नफासत नही जुड़ी हुई है
कोटाडा की लम्बी पत्ती वाली चाय की जो आदत पड़ी तो हर ट्रान्सफर पर यह खोज बनी रहती
कि किसी दुकान में शायद मिल जाए
बंगलोर में तो मिल जाती थी पर पिछले तीन महीने से यहाँ भी मुश्किल से मिल रही है
शायद निलगिरी के चाय बागानों की खस्ता हालत के चलते वहां तालाबंदी हो गई हो
अफीम की लडाई के बाद जब अंग्रेजों को चीन से चाय मिलने में मुश्किल हुई तो हिंदुस्तान में चाय बागानों की नींव डाली गई
दुनिया की मंडी में निलगिरी की चाय के दामों में मंदी चल रही है
चाय बगान बंद हो रहे हैं
कही ऐसा तो नही कि टोडा और ईरुला जनजातियों के इलाके के इस चाय बगान में Stanes Amalgamated Company ने लाक आउट घोषित कर दिया है
चाय की चुस्की में अब वह स्वाद नही मिलता

Wednesday, September 10, 2008




रेल भोजन
मशहूर शायर के नाम पर चलने वाली 'कैफियात एक्सप्रेस' ट्रेन में ३ एसी में सीट मिल गई थी
पढने के लिए जापानी फिल्मकार अकिरा कुरोसावा की आत्मकथा 'Something like a biography' साथ में थी
घर से पैक किया पूरी आलू भी था
इससे दिव्य कुछ और हो सकता है क्या
भाई प्रमोद सिंह होते तो उन्हें याद आती कुरोसावा साहब की अमर फिल्मों की
रशोमोन और सेवेन समुराई जैसे मास्टर पीस की
पर मुझे याद आ रही थी बचपन से आज तक की अलग ट्रेन यात्राओं की और उससे भी ज्यादा उनमे खाए 'rail meals'की
रेलवे platform और वहां के refreshment rooms का जायका ब्रिटिश राज के दिनों से मशहूर है
रेलवे Mutton करी तो अब कुक बुक्स का हिस्सा बन चुकी है
लेकिन मुझे हाल में मिली एक लिस्ट (Compiled by Sukrut Thipse).
जिसमे भारत भर के रेलवे स्टेशनों पर मिलने वाले व्यंजन लिखे हैं
आप भी देखें
Pune - Tea, Misal, and Patties in the canteen
Karjat - Batata vada / vada pav (Potato snack)
Lonavala - Chocolate Fudge / Cashewnut Chikki (cashewnut brittle candy)
Neral - Seasonal Jambhool fruit
Khandala - Seasonal Jamoon fruit (plums)
Solapur - Kunda (sweet barfi)
Kolhapur - Sugarcane juice
Miraj - Saar and Rice
Hubli - Hubli rice (Curd rice (yogurt rice) with onions, chile peppers, and pickles)
Mysore - Dosa
Tiruchirapalli - Bondas in several variations
Hyderabad - Chicken biryani
Calicut (Kozhikode) - Dal vada
Quilon - Rasam
Mangalore - Egg Biryani
Ernakulam - Fried yellow bananas
Nagpur - Bhujia, and oranges
Guntakal - Mango jelly
Chennai Central - Samosas, idli, dosa
Rameshwaram - Idiuppam (Rice Noodles)
Agra - Petha (candied pumpkin)
New Delhi - Aloo chat (tangy potato snack)
Indore - Farsan
Ahmedabad - Vadilal ice-cream
Surat - Undhyo (mixed vegetables)
Ranchi - Puri bhaji
Howrah - Sandesh
Amritsar - Lassi, Aloo paratha
Bangalore - Vada sambar, fresh fruit juices
Jaipur - Dal bati
Gandhidham - dabeli
Varanasi - Seasonal amrud fruit (guava)
Gorakhpur - Rabdi (a sweet made of milk and sugar)
Guwahati - Tea (Assam blend)
Madurai - Uthappam (spicy lentil/rice pancake)
Ajmer - Mewa (Mix fruit)
Vasco-da-gama - Fish curry/cutlets
Ratnagiri - Mangoes, dried jackfruit
Vijayawada - Fruit juices
Rajahmundry - Bananas
Daund - Peanuts
Tirupati - Ladoos, sevai
Londa - Jackfruit
Allahabad - Motichur ladoos
Ambala - Aloo paratha
Puri - Halwah
Bhubaneshwar - Dal and rice
Coimbatore - Sambar-rice, tamarind-rice, lemon-rice
Dehradun - Salted cucumber
Gwalior, Bhopal - Boiled chickpeas with chile peppers
Surendranagar - Tea with camel's milk
Anand - Gota (fenugreek fritters), and milk from the dairy farm there
Khambalia Junction - Potato/onion/chili fritters
Dwaraka - Milk pedhas
Viramgam - Fafda (ganthiya), Poori + Alu-bhaji
Pendra Road - Samosas
Manikpur - Cream
Thanjavur - Salted cashewnuts
Bharuch - Peanuts
Maddur - Maddur-vade
Chinna Ganjam - Cashewnuts
Gudur - Lemons
Panruti - Jackfruit
Virudunagar - Boli (a thick sweet flat bread)
Sankarankoil - Chicken biryani
Srivilliputtur - Paal kova (a soft milk-based sweet)
Manapparai - Murukku

Thursday, July 10, 2008


एअरपोर्ट पर लूट

पहले अच्छी ख़बर

जैसे ही आप नए बंगलोर एअरपोर्ट की आलीशान ईमारत से बाहर निकलेंगे

आपको लाल रंग की एसी वोल्वो बसों की कतार दिखेगी

BMTC की 'वायु वज्र' सेवा की ये बसें १५०/१२५/१०० रुपये में बंगलोर के किसी भी कोने में पहुँचा देंगी

आपके घर के सामने वाली सड़क तक

ररत दिन चलने वाली इन बसों में conductor हाथ में सिंप्यूटर लिए रहता है ,बस में ही टिकट का printout निकाल देता है

बसों में ऍफ़ एम् संगीत और मोबाइल चार्जिंग की सुविधा है

खास बात यह कि आप इन्टरनेट पर इसकी अडवांस बुकिंग कर सकते हैं,सीट चुन कर हवाई जहाज की तर्ज़ पर

खुशी होती है कि कोई सरकारी संस्थान इतना अच्छा कम कर रहा है

BMTC मुनाफा कमाने वाली सरकारी संस्था है

लेकिन एअरपोर्ट के अन्दर, बाहर बुरा हाल है

एअरपोर्ट शहर से करीबन ४० किलोमीटर दूर है

तीन घंटे विमान में बैठने के बाद भूख लगी

सस्ती एयरलाइन्स खाने को भी कुछ नहीं देतीं

सोचा काफी पी ली जाए

एअरपोर्ट के बाहर 'कैफे काफी डे' की अकेली दुकान थी

सबसे सस्ती काफी ५० रुपये की थी,ब्लैक काफी

अगली वाली ६५ रुपये की ,एक समोसा साथ में लिया

बिल १०५ रुपये का आया

पेट क्या भरता ,जेब कट गई


ऊपर पहली तल पर फास्ट फ़ूड रेस्तरां में देखा

एक प्लेट इडली ९० रुपये की थी

बम्बइया पाव भाजी का भी दाम ९० रूपया था

आगे दूसरा रेस्तरां इस से भी महंगा था

शायद किराये में बढ़त के बाद मध्य वर्ग को हवाई यात्रा की इजाज़त न मिलें

जिन लोगों को दफ्तर के काम से आना जाना पड़ता है

वो क्या करें

शायद पुराने ज़माने की तरह पूरी भाजी ,मठरी बाँध कर ले जाने के दिन आ गए

पुराने HAL एअरपोर्ट पर काफी ५-१० रुपये वेंडिंग मशीन में मिल जाती थी

शायद प्रगति हमेशा सुखदाई नहीं होती

Tuesday, July 8, 2008


बुखारा/समरकंद/ अफगान /पेशावरी

पहली नज़र में भारत के पड़ोसी देशों के शहरों की लिस्ट लग सकती है

पर यह लिस्ट है अलग अलग शहरों के frontier/पठान भोजन के अच्छे रेस्तरां की

दिल्ली का बुखारा इन सबका बादशाह है

कहते हैं कि बिल क्लिंटन और पुतिन साहब बहुत कम बातों पर एकमत थे

वे सहमत थे कि दुनिया में सबसे लज़ीज़ हिन्दुस्तानी खाना बुखारा में मिलता है

चाहे वह रात भर पकने वाली दाल बुखारा हो या तंदूर में पकी सिकंदरी रान हो

मुर्ग मलाई कबाब और तंदूरी झींगा भी नहुत मशहूर है

दुनिया के कई राष्ट्राध्यक्ष एक दिन दिल्ली में और रुकने के लिए तैयार रहतें हैं

बशर्ते उन्हें बुखारा में दावत दी जाए

दुनिया के ५० बेहतरीन होटलों में इसकी गिनती होती है

एक बार भोजन भट्ट को भी यहाँ जाने का मौका मिला था

२ घंटे के इंतज़ार के बाद बैठने कि जगह मिली

बड़े खानसामा लोग तंदूर में मुर्ग लगाते दिख रहे थे

छोटे स्टूल और नीची मेज, छुरी कांटे नही मिलतें ,हाथ से खाइए

इतना विशाल और मुलायम पनीर टिक्का कहीं और नही मिला

दाल बुखारा टमाटर के रंग और स्वाद से सजी थी

लेकिन सादी दही का रायता ३५० रुपये प्लेट मिलता होगा ,इसकी कल्पना नही की थी

शायद यह दिल्ली में ही सम्भव है

इसके बाद कई बार मिलते जुलते नामों वाले होटलों में गया पर वह स्वाद कहाँ

हाल में बंगलोर के इन्फंट्री रोड पर गेम प्लाजा में बने 'समरकंद' ने याद ताज़ा कर दी

उज्बेगिस्तान का समरकंद,तैमुर खान और चंगेज़ खान के नाम से जाना जाता है

शायद वहां से तंदूर में कबाब बनाने की शुरुआत हुई हो

हमने पनीर टिक्का और माही अफगानी से शुरुआत की

पनीर टिक्का अच्छा था ,दो लोग एक प्लेट नही खा पाये

माही अफगानी असल में तंदूर में पकी बेटकी मछली थी

पूछा क्या समरकंद में मछली मिलती होगी

जबाब था कि चंगेज़ खान के लिए अरल के समुद्र से लाते थे

मित्रों को काफी भाई ,कुछ भी प्लेट में नहीं बचा था

दाल मखनी और और तंदूरी सब्जी ठीक ठाक थी

रेस्तरां लंच के समय भरा था

पेट भी काफी भर गया था

मीठा पान खाकर आ गए

फिरनी/कुल्फी अगली बारी

चित्र साभार

Wednesday, July 2, 2008

Rotting food :hungry people
Over 10 lakh (1 million) tonnes of food grains worth several hundred crores of rupees, which could have fed over one crore hungry people for a year, were damaged in Food Corporation of India godowns during the last one decade.

The damages were suffered despite the FCI spending Rs 242 crore (Rs 2.42 billion) while trying to prevent any loss of food grains during storage. Ironically another 2.59 crore was spent just to dispose off the rotten food grains.

It comes at a time when a United Nations report has claimed that 63 per cent children in India go to bed without any food.

The FCI informed that 183,000 tonnes of wheat, 395,000 tonnes of rice, 22 thousand tonnes of paddy and 110 tonnes of maize were damaged between 1997 and 2007.

Information courtesy :rediff.com

Tuesday, July 1, 2008


बिटिया रानी की किताब

बिटिया रानी को ड्राइंग का शौक है
अमूमन सब बच्चों को बचपन में होता है
लेकिन भोजन भट्ट के घर का हाल देख कर उन्होंने शौक में तबदीली की
जिस घर में दिन रात टी.वी. पर खाना खजाना जैसे प्रोग्राम चलते हों
जहाँ किताबों और पत्रिकायों के नाम पर कुक बुक्स का संकलन किया जाता हो
जिनका सारा ध्यान बाज़ार में खरीदारी करते समय अगले दिन के मेनू पर रहता हो
जिस घर में शारुख खान की जगह संजीव कपूर के केश विन्यास पर डिस्कशन होता हो
वहां क्या किया जाए
बच्चों वाली ड्राइंग बुक छोड़ कर पापा के साथ मिलकर एक कुक बुक बनाई गई
जिसमें घरेलू पसंदीदा रेसिपेस का समावेश था
कलाकारी के नाम पर उनकी कूंची के कारनामे थे
पूरी किताब http://popanddaughtercookitupformom.blogspot.com/ पर है
उसी किताब से
आसान पुडिंग

चाहिए : 1 मारी बिस्कुट का पैकेट
I कस्टर्ड का पैकेट
सजाने के लिए चॉकलेट सॉस और जेम्स

तरीका : पैक पर लिखे निर्देश से १/२ पैकेट कस्टर्ड बनाये
एक बर्तन में आधे पक्के बिस्कुट तोड़ कर डालें
आधी कस्टर्ड उसके ऊपर डालें
उसके ऊपर बचे बिस्कुट
उसके ऊपर बची कस्टर्ड डालें
माइक्रोवेव में एक मिनट पकाएं
ऊपर से जेम्स और चॉकलेट सॉस डाल कर सजाएँ
पुनश्च
सुना है कि संजीव कपूर २४ घंटे चलने वाला 'फ़ूड चॅनल' टी.वी. पर लाने वाले हैं
बाप बेटी नौकरी के लिए आवेदन करेंगे
मीडिया के दोस्तों से सिफारिश की दरकार है

Monday, June 30, 2008


बंद होना एक रेस्तरां का
काफी हाउस कहना अतिश्यक्योति होगी

लेकिन ज्यादातर काफी पीने ही हम लोग वहां जाते थे

बंगलोर में जिस सोसाइटी में हम लोग रहते हैं ,उसमे निलगिरिस का सुपरमार्केट है

बाहर वालों को बता दूँ कि निलगिरिस दक्षिण भारत का सबसे पुराना सुपरमार्केट है

जिसकी शुरुआत डेरी फार्म के तौर हुई थी लेकिन अच्छे उत्पादों की वजह से विस्तार में देरी नही लगी

बंगलोर की ब्रिगेड रोड वाली दुकान पर हमेशा भीड़ रहती थी

नीचे बेसमेंट में बेकरी और ऊपर वाली मंजिल पर रेस्तरां

लेकिन हमेशा भीड़ भाड़ होने से कभी तस्सली से बैठ कर खाने का सुख नहीं मिला

इसलिए जब मकान एअरपोर्ट रोड वाली सोसाइटी में मिला तो भोजन भट्ट का पूरा परिवार गदगद था

निलगिरिस से खरीदारी और गाहे बगाहे नाश्ता खाना

वह भी कैम्पस के अन्दर ,सड़क पार करने की ज़रूरत भी नहीं

नाश्ते में दक्षिण भारतीय पारंपरिक व्यंजन

इडली,वादा,डोसा,उपमा,

बंगलोर के नए उमर वालों के लिए संदविच और आमलेट भी

पर पूरी तौर से आत्मीय अंदाज़ में

इसका कारण पूरे रेस्तरां का सञ्चालन महिला कर्मियों के हाथ में था

बिलिंग से लेकर खाना पकाने और सर्व करने तक

महिला बावर्ची कुशल थीं , हम लोग अंदाजा लगते थे कि आज अमुक ने डोसा बनाया है, करारा होगा

बिल्कुल घर जैसा माहौल और स्वाद

(फर्नीचर थोड़ा घिस गया था ,अपनी जिंदगी की तरह )

साम्भर बंगलोर के आम रेस्तरां से हटकर पतली और कुछ कच्चे मसाले की खुशबू में पगी हुई

दोपहर में हर दिन अलग टिफिन बनता था

कभी आलू बोंदा ,कभी प्याज भाजी, कभी मद्रास पकौडा

बिटिया रानी को मद्दुर वड़ा पसंद है पर सही दिन हम लोग पहुँच नही पाते थे

एक बार गए तो महिला कर्मी ने पूछा बिटिया नही आई ,अच्छा हुआ ,दुखी होती

आज के सारे मद्दुर वडे एक सज्जन पार्टी के लिए ले गए

सुन कर अच्छा लगा की हमारी पसंद का कोई इतना ख्याल रखता है


इस बार सुपरमार्केट में जब ' Closed for Renovation' की तख्ती लगी दिखी

तो अंदेशा हुआ कि कहीं नए मालिक रेस्तरां को बंद न कर दें

आख़िर इतनी बिक्री तो नही है यहाँ

दो महीनों तक झांक झांक कर देखते थी कि रसोई वाला हिस्सा बरक़रार है या नहीं

पता नहीं चला

आख़िर गुरूवार को नई साज सज्जा में निलगिरिस सुपरमार्केट की फिर शुरुआत हुई

चकमकाती Tiles और नए उत्पादों से भरे स्टोर में से रेस्तरां गायब था

रसोई और फर्नीचर को हटाकर महंगे आयातित खाद्य पदार्थों को सजाया गया था

यह पूछने पर कि इडली मिलेगी क्या ,हरी टी-शर्ट पहने सज्जन ने प्लास्टिक पैक की ओर इशारा किया

मन उखड गया

कहाँ सपरिवार बैठ कर स्टील की थाली में ताज़ी बनी इडली साम्भर, चटनी के साथ खाते थे

कहाँ यह प्लास्टिक में पैक सामग्री, पता नहीं कब बनी होगी ,कहाँ बनी होगी, माइक्रोवेव में गरम कर वह स्वाद कहाँ से आएगा

और कहाँ गयीं वे तमिल महिलाएं जो हमें परोस कर खिलातीं थीं

आदत बदलनी पड़ेगी

दुनिया बदल रही है

Thursday, June 26, 2008




तीसरा आदमी कौन है
जो नारियल पानी बम्बई में १५-२० रुपये में इस साल बिक रहा है उसके लिए किसान को फी नारियल दो रुपये भी नही मिलते
मंड्या (मैसूर के पास कर्णाटक में) जिले से पूरे भारत भर में हरे नारियल भेजे जाते हैं
वहां के किसान बताते हैं कि उन्हें २.५० रुपये से ज़्यादा एक नारियल के लिए कभी नहीं मिलते
गेहूं की कीमत मंडी में १००० रुपये क्विंटल नहीं मिलती
(बशर्ते किसान के पास इतनी क्षमता हो कि वह उसे मंडी तक लाकर बेच सके )
बंगलोर में आटा २९-३१ रुपये किलो बिक रहा है
आटे की पिसाई २ रुपये किलो से ज्यादा तो नही लगती होगी
पैकिंग और यातायात की लागत इतनी तो नही हो सकती
इस साल सेब १२०-१३५ रुपये किलो बड़े शहरों में बिक रहे हैं
हिमाचल और कश्मीर के उत्पादकों को क्या कीमत मिलती है ,पता कर लीजिये
कुछ साल पहले भण्डारण और ट्रांसपोर्ट के अभाव में हिमाचल के अनदुरुनी जिलों में आलू और सेब को एक भाव बिकते और न बिक पाने पर सड़ते देखा है
कल शाम जामुन बिकती दिखी ,दाम पूछा-१०० रुपये किलो
हमारे गाँव में क्या कीमत मिलती है बताने में भी शर्म आती है
तो क्या वजह है कि उपभोक्ता को जो खाद्य पदार्थ इतनी ऊँची कीमतों पर मिलते हैं ,उत्पादक किसान लागत भी नहीं निकल पाने के कारन आत्म हत्या करने पर मजबूर है
अब समय आ गया है कि उस आदमी की पहचान कर ली जाए जो न रोटी बेलता है न रोटी खाता है पर जिसकी वजह से आम आदमी को बढती कीमतों से जूझना पड़ता है
प साइनाथ अपनी मशहूर किताब ' Every one loves a good drought 'में तमिलनाडू के रामनाड जिले के मिर्ची उत्पादकों की वहां की मंडी के कमीशन एजेंटों (थारागर) के हाथ लुटने की कहानी बयान करते हैं
बिचौलिए तौलिये के अन्दर उँगलियों की गुप्त भाषा में मिर्ची की कीमत और किसानों की जिंदगी की कीमत तय करते हैं ,खरीदार और किसान इस पूरी प्रक्रिया से बाहर है
कुल ७० कमीशन एजेंटों द्वारा पूरे तमिलनाडू के किसानों की किस्मत का फैसला होता है

गाँव के पास की मंडी में रामधन के बैल बेचने की कहानी प्रेमचंद के ज़माने से नही बदली है
दलालों ,बिचौलियों,एजेंटों के हाथ जिंदगानी पिस रही है
दिल्ली की आजादपुर मंडी के मालिक तय करते हैं कि हिमाचल और कश्मीर के किसानों के घर कितने दिन चूल्हा जलेगा
अजीब मकड़ जाल है यह
(इन्कम टैक्स विभाग के मित्र जब एक केला व्यापारी के यहाँ गए तो भव्यता देख कर दंग थे ,तीन मंजिली airconditioned आरामगाह में घर के अन्दर लिफ्ट लगी थी ,हर मंजिल पर जाने के लिए)
लीची के व्यापार पर शोध करने वाले बताते हैं
'The Pre-Harvest Contractor or the commission agent makes the maximum margin in litchi marketing, as he only performs a transfer function without involving any other cost. The stockists in litchi sale adopt the undercover system and realise higher margins. The retailers are the second market intermediaries who realise a margin of 20 per cent in the consumers price. The overall price spread in litchi trade is observed to be around Rs 49.5 per kg and works out to over 82 per cent. In case the grower undertakes self- marketing, the price spread is approximately Rs 40 per kg. '
८२% मुनाफा !तभी तो लीची खाना अब सबके बस की बात नहीं
कुछ सालों में नारियल पानी भी साझे में पीना पड़ेगा
अगर तीसरे आदमी का साम्राज्य यूँ ही फैलता रहा
चित्र और आंकड़े साभार

Monday, June 23, 2008



कटिंग चाय -मजबूरी में
इसका स्वाद मुंबई वालों के लिए तो आम बात होंगी
पर वन - बाई टू काफी पीने का मौका बंगलोर आकर ही मिला
सधे हाथों से स्टील के ग्लास में पहले गाढा द्रव्य (काफी decoction)डालते हैं फ़िर एक कप दूध+पानी+चीनी के उबलते पेय को दोनों ग्लास में बाँट देते हैं
शुरू में लगता था क्या अजीब शगल है
बाद में लगा कि ये बढती कीमतों से जूझने का एक तरीका है
लेकिन हाल की सर से ऊपर भागती महंगाई के चलते ये काफ़ी भी अब बहुतों को नसीब नहीं है
पूरे दक्षिण भारत में बिना फिल्टर काफी के दिन की शुरुआत नही होती
कामकाजी/मजदूर नुक्कड़ की काफी कढाई/ठेले पर पीते हैं
होटल वाले इडली डोसा के साथ काफी का दाम भी बढ़ाने को मजबूर हैं
काफी हर शख्स पीता है पर बढ़ा हुआ दाम देने में असमर्थ है
होटल वाले आधे कप का तीन चौथाई भर कर उसी कीमत पर बेच रहें हैं
कई लोग दूध कम कर पानी बढ़ा रहें हैं
बिहार में लालू यादव की लोकप्रियता में भले कमी न हुई हो
समोसे के अन्दर भरे आलू मिश्रण में भारी कमी हुई है
बेकरी वाले puff के अन्दर भरा सब्जियों का मसाला कम कर रहे हैं
भोजन भट्ट का परिवार हाल में डोसा खाने गया तो डोसे की साइज़ देख कर दंग रह गया
थाली की साइज़ का डोसा सिमट कर तश्तरी के आकार का रह गया था
दूसरा डोसा ऑर्डर करने की गुंजाईश नही थी सो आधे पेट मन मसोसना पड़ा
दुनिया की दो तिहाई आबादी खाने की बढती कीमतों से जूझ रही है
पर बच्चों को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है
पहले मिड डे भोजन में मेनू हर दिन बदलता था
खारा पोंगल /रोटी सब्जी / चावल साम्भर/ बिसे बिले भात /उपमा मिलती थी
हर डिश में सब्जियां लगती हैं
सब्जियां अब सबको नसीब नहीं
२.३२ रुपये फी बच्चे में शाला विकास प्रबंधन समितियां सब्जियां जुगाड़ने में असमर्थ हैं
नतीजन बच्चों के खाने से सब्जियों की कटौती हो रही है
बड़ी कम्पनियाँ चालाकी अपना रहीं हैं
५०० ग्राम चाय के पैकेट में ४९० ग्राम चाय मिलती है
सो कटिंग चाय भी अब सबको मयस्सर नहीं

Thursday, June 19, 2008


कर्ड राइस
जब से दक्षिण भारत में आए हैं यह डिश पीछा नहीं छोड़ती
कहीं बाहर खाने जाओ तो पुलाव ,अन्ना सारु (रसम चावल) खाने के बाद अगर कहें भी कि और चावल नहीं खाए जायेंगे ,लोग मुस्कराकर कहते हैं अन्ना मसुरु (दही चावल ) तो लीजिये
दफ्तर में जहाँ हमारे तीन खाने के टिफिन में दाल रोटी सब्जी होती थी ,स्थानीय सहयोगी स्टील के छोटे से डब्बे में कर्ड राइस खाकर संतुष्ट थे ,तृप्त थे
चारों प्रान्तों के लोग अगर मिलें तो अपने इलाके के कर्ड राइस का गुण गान करने लगते थे
तमिल लोगों का Thayir Sadam Thayir (Curd) Sadam (Rice), आंध्र प्रदेश में Daddojanum कहलाने लगता है मलयाली अपने ढंग का ही बनाते हैं
कहते हैं कि विदेशों में भी अगर इस इलाके के लोग मिल जायें तो कर्ड राइस कि चर्चा अक्सर होती है
संक्षेप में कर्ड राइस के बिना दक्षिण भारत में भोजन पूरा नहीं होता
हर घर में दोनों टाइम बनाना ज़रूरी है
और हर घर की अलग रेसिपे है
आप भी कहेंगे कि दही चावल बनने में क्या मुश्किल है
मानता हूँ पर फर्क छौंक में है
१ कप उबले चावल लीजिये (ठंडे /गरम सब चलेगा)
उसमे कटी हुई हरी धनिया,हरी मिर्च,अदरक और हींग मिलाएं
इसमें १/२ कप दही और १/४ कप दूध मिलाएं
छौंक के बर्तन में गरम तेल में सरसों/राइ के दाने, उरद की दाल के दाने , चने की दाल के कुछ दाने ,करी पत्ता डालिए (खड़ी लाल मिर्च पसंद हो तो वो भी)
दही चावल के मिश्रण पर डाल कर थोडी देर फ्रिज में रख दीजिये
इंतज़ार मुमकिन न हो तो तुंरत खाइए
साथ में नींबू/आम ( avakai) का आचार और पापड़/fry हों तो अति उत्तम
दुनिया का सबसे आसान comfort फ़ूड हाज़िर है
लेकिन इस सरलीकृत तरीके से पुराने लोग न सहमत हों
आजकल भी तमिल महिलाएं बहू को यह शिक्षा देती मिल जायेंगी
हमारे ज़माने में तो मोतियों से सफ़ेद चावल पर बारीक कटी हरी मिर्च डालते थे
हींग पावडर वाली थोड़े न डालते थे ,कटोरी में हींग की छाल को भिगोकर उसका सत्व निकलता था
ऊपर से अनार के दाने और अंगूर भी पड़ता था
तब स्वाद आता था, आजकल डेरी वाले दूध की दही में क्या मजा
खैर हमारा परिवार तो दीवाना है किसी पार्टी में भी अगर कर्ड राइस दिख जाए तो सब कुछ छोड़ कर उधर मुड़ जाता है
एक बार रामेश्वरम के पास धनुषकोटि के पास एक छोटे से ढाबे में हमारी बिटिया रानी मचल पड़ी
नान कर्ड राइस बेका
भयंकर गर्मी की दोपहरी थी ,कोई भी खाने की चीज ख़राब हो सकती थी
दही तो निश्चित ही खट्टी होगी, दही चावल खाकर बिटिया ज़रूर बीमार पड़ेगी
कोई चारा नहीं था ,सोचा मदुराई पहुँच कर डॉक्टर को दिखाना पड़ेगा
बिटिया ने अंगुलियाँ चाट कर दही चावल खाए
माँ बाप का दिल काँपता रहा
लेकिन कुछ नहीं हुआ
यह है कर्ड राइस की महिमा
चित्र साभार

अन्नपूर्णा रसोई
कल के अखबार में मुंबई के ' माहिम दरबार ' होटल के बाहर बैठे इन दुखियारे लोगों को देखा तो एक पुरानी याद ताज़ा हो गई
अस्सी के दशक में नई नौकरी के सिलसिले में अहमदाबाद जाना पड़ा
शहर के कई हिस्सों से भव्यता टपकती थी
पर पुराने अहमदाबाद के कई बिरयानी होटलों के बाहर लोगों के झुंड उकडूं बैठे थे
चेहरे पर न बयान की जा सकने वाली पीड़ा और आशा का मिला जुला भाव था
पहले सोचा काम की तलाश में बैठे होंगे
पर दिन के बारह बजे धूप में कौन इन्हे काम देगा
ठेकेदार तो सुबह ही मजदूर पकड़ लेते हैं
पूछ ताछ की तो पता चला कि ये लोग खाने की उम्मीद में होटल के बाहर इंतज़ार कर रहें है
कोई दयालु सज्जन इधर से गुजरेंगे तो होटल मालिक को पचास-सौ रुपये देकर इनमे से कुछ लोगों के एक टाइम के भोजन का इंतजाम हो जायगा
इसी उम्मीद में ये लोग बैठे हैं
धनी लोगों की माया नगरी के ये हाल देख कर मन दुःख और क्षोभ से भर गया
गुजराती लोग तो सारी दुनिया में 'soup kitchen' चलाते हैं ,फ़िर अपने शहर में क्यूं नहीं
कल यही चित्र मुंबई के होटलों के बाहर दिखा
खस्ता हाल ये वो लोग हैं जिन्हें दिहाडी का काम न मिलने पर खाने की तलाश में यूँ भटकना पड़ता है
किसी मेहरबान की निगाह की इंतज़ार में बैठे लोग दस रुपये प्लेट का खाना (अगर मिल जाए ) सर झुकाकर जल्दी जल्दी खाते लोग
जिससे जिंदगी की गाड़ी एक और दिन चल सके
क्या दुनिया की नई महाशक्ति बन कर उभरने का ख्वाब देखने वाले देश के पास कोई रास्ता नहीं है
पंजाब में गुरद्वारों के लंगर के चलते कई शताब्दियों से हर किसी को भोजन उपलब्ध है
बिना किसी सवाल ज़वाब के
कारसेवा के चलते हर आदमी किसी न किसी तरह से सहयोग देता है
मुस्लिम समाज में 'ज़कात' की परम्परा रही है
बिना किसी सरकारी सहायता के १९७४ से पुणे की हमाल पंचायत ३०,००० लोगों को सस्ते में भोजन उपलब्ध कराती है
(शिव सेना सरकार की एक रुपये में 'झुनका भाखर' की स्कीम क्यों नाकामयाब हुई ,इस पर फिर कभी )
हम्माल समाज की महिलायों को रोज़गार के अवसर भी मिलें हैं
असली सवाल क्रय शक्ति का है जवाब वृहत्तर समाज की इच्छा शक्ति का है
कहीं कोई कमी है
तभी भारत के सबसे अमीर लोगों के शहर में हजारों लोग इंतज़ार में है
एक मेहरबान निगाह की
चित्र साभार

Wednesday, June 18, 2008


धान का कटोरा
मृणाल पांडे ने मिंट अखबार में लिखा है कि बुंदेलखंड में अब लोग एक दूसरे की रोटियां लूटने लगे हैं
कुछ खेतिहर मजदूर दिन के खाने की पोटली लेकर निकले ही थे कि गाँव के बाहर दूसरों ने बल से खाना छीन लिया
बंगलादेश से लेकर हैती तक में अनाज की किल्लत से दंगे हो रहें हैं
जबसे ज्ञानवंत बुश साहब ने भारत चीन को दुनिया में खाद्यान्न की कमी के लिए जिम्मेदार बताया है
दुनिया भर में उनकी थू थू हो रही है
विद्वान् गण अनाज को मांस में तब्दील करना कमी का कारण बताते हैं
कुछ लोग corn को ईंधन के लिए उपयोग करने से उपजी जिंसों की किल्लत को जिम्मेदार बताते है
पर इस पूरे प्रकरण में जापान कि भूमिका पर ध्यान नहीं दिया गया
धान की कमी के लिए भारत ,विअतनाम और थाईलैंड पर आरोप लगते हैं कि निर्यात पर रोक लगाने से पड़ोसी देश परेशान हो रहे हैं
जापान हर साल ७ लाख टन धान का आयात करता है
मजबूरन
उसके गोदामों में औसतन २.४ मिलियन टन धान भरा हुआ है
दो तिहाई हिस्सा अमरीका से ख़रीदा हुआ है
यह सारा धान airconditioned गोदामों में रखा है
क्योंकि इसकी ज़रूरत किसी को नही है
सड़ता भी नही
इसलिए हर चौथे साल इसे निकाल कर मुर्गियों को खाने के लिए दाल दिया जाता है
जापानी लोग आयात किया हुआ चावल किसी भी कीमत पर खरीदने को तैयार नही है
शायद मुफ्त में भी नही
दूसरे विश्व युद्ध से जापान ने अगर कोई नसीहत ली तो खाद्यान्नों के मामलें में आत्म निर्भरता की
मगर अमरीका जिद पर अडा है कि हर साल सात लाख टन चावल उसे अमरीका से खरीदने पड़ेंगे
चाहे जरुरत हो या नही
उरुगुए राउंड की यही दरकार है
जापान अगर इस अतिरिक्त चावल को पड़ोसी देशो को बेचना/मुफ्त में भी बाटना चाहे तो नही कर सकता
क्योंकि अमरीका के हिसाब से इससे ग़लत परिपाटी शुरू होगी
अंततः उसके बड़े किसानों को नुक्सान उठाना पर सकता है
इसलिए दंगे होते हैं तो होते रहें
महाबली आजकर गुफ्तगू कर रहे हैं

Tuesday, June 17, 2008


बिहारी व्यंजन

आज कल तो हर ढाबे में पंजाबी खाने के साथ chinese भोजन का मिलना जरुरी सा है
दूरदराज समुद्र के किनारे बने दक्षिण भारतीय होटलों में भी पंजाबी-chinese लिखा होता है
लेकिन ठीक बंगलोर के बीचो बीच बिहारी खाने का विज्ञापन करता 'चिली पेपर ' नई हवा का अहसास कराता है
मर्थाल्ली रिंग रोड पर मल्गुदी होटल के पास इस होटल की खूबियाँ अनेकों है
हफ्ते में तीन दिन यहाँ लिट्टी चोखा ,सत्तू पराठा और मकुनी मिलती है
लिट्टी में हरी मिर्चियां , लहसुन , सरसों का तेल , जीरा मिलाते हैं चोखा उबले आलू , बैंगन और टमाटर का मिलता है
सत्तू में पानी के साथ अदरक,जीरा मिलाकर पीने को भी मिलता है लिट्टी कोएले पर पकती है ,चाहें तो मटन/चिकन करी के साथ खाएं
अचरज की बात यह है कि इसके मालिक धरमराज मलयाली हैं
बोकारो में बचपन बीता, मैसूर में पढे पर बिहार के भोजन का स्वाद नहीं भुला पाये
स्टील के व्यापार के साथ इस दिशा में भी कदम बढाये शुरू शुरू में बहुत घाटा हुआ
होटल के किराये और खर्चे की लागत भी नही निकलती थी
पर बंगलोर की दो लाख से ज्यादा up/बिहार के जन मानस की आशा में टिके रहे
मेहनत रंग लायी और सप्ताहांत में होटल भरा रहता है
राजधानी एक्सप्रेस की शक्ल में बनी खिलौना ट्रेन खाना गर्म करने और सर्व करने के काम आती है मेनू में ६५० से ज्यादा व्यंजन लिखें हैं
हमने गोली कबाब ,पांच सब्जियों से बनी veg ginger से शुरुआत की
तले हुए कबाब के साथ मसाला पेप्सी अजब ही स्वाद देता है
काली दाल ,सब्जी अकबरी और नरगिसी कोफ्ते किसी भी अच्छे रेस्तौरांत को मात दे सकते थे
अनानास का रायता थोडी पीली रंगत लिए था
पेट इतना भर गया था कि गर्मागर्म जलेबी छोड़नी पड़ी
दिन के वक्त दाल बाटी चोखा नहीं मिलता है
इसका अफ़सोस रहा पर उम्मीद पर दुनिया कायम है
अगली बार सही

Monday, June 16, 2008


बेताज बादशाह
अमीन सयानी की भाषा में कहूँ तो ढाबे भी कई पायदान चढ़ते उतरते रहते हैं
श्रोताओं की फरमाइश और रेकोर्डों की बिक्री की तरह ही ग्राहकों की पसंद बदलती रहती है
हर हफ्ते न सही ,कुछ महीनों में बदलाव नज़र आ जाता है
इसके चार पैमाने हो सकते हैं
१.उत्तम खाना
२.पैसा वसूल दाम
३.माहौल और साफ सफ़ाई
४.शहर से दूरी
कुछ सालों पहले खाने के शौकीनों की राय बंटी हुई थी
अमृतसर-जालंधर मार्ग का Lucky ढाबा पहली पायदान पर गिना जाता था
चौबीसघंटे ढाबे के सामने बसों ,ट्रकों की कतार लगी रहती थी
लुधिअना जालंधर के बाशिंदे भी अच्छे सुस्वादु भोजन की खोज में मिल जाते थे
कई लोग करनाल-पानीपत सड़क पर बने प्रिन्स ढाबा को सरताज मानते थे
हिमाचल वाले कसौली के रस्ते में धरमपुर के पास के 'ज्ञानी ढाबा' की तारीफ़ करते थे
बरनाला कैंची के पास का नेशनल ढाबा भी मशहूर था
(खाना सबमे एक जैसा ही था ,कड़क तन्दूरी पंजाबी व्यंजन)
लेकिन २००१-०२ में लुधियाना जालंधर सड़क पर एक नया ढाबा क्या खुला
कि सारी तस्वीर बदल गई
पारंपरिक पंजाबी शान शौकत से सजा 'हवेली' शाकाहारी ढाबा जब खुला तो महीनों तक ढाबे के बाहर घंटों लम्बी कतारें लगीं
दो तीन बार और जालंधर वालों की तरह भोजन भट्ट का परिवार भी बाहर से नज़ारे देख कर लौट आया
जलेबी,गुलाब जामुन, कुल्फी ,चाट बाहर ही मिलती थी
गोवा में होटल बेच कर बनाए इस ढाबे से जैन बंधुओं ने ढाबों की दुनिया में मानो क्रांति ला दी
ढाबे के कई हिस्से थे
५५० सीटों वाला वातानुकूलित हाल -फुलकारी सजावट और पारंपरिक बर्तन भांडे सहित
किलकारियाँ -बच्चों के खेलने के लिए मेले जैसा माहौल -पानी से भरा नकली कुआँ,पनघट समेत
पास में रंगला पंजाब पार्टी हॉल
ख़ास बात यह थी कि फाइव स्टार व्यवस्था के बावजूद दाम ढाबे के स्तर के थे
अपनी याद दाश्त में इतने साफ सुथरे बाथ रूम मैंने किसी होटल में नही देखे
भोजन भी उत्तम था ,वहां खाई व्रतों वाली नवरात्र थाली अभी भी याद है
खीर ठंडी और गाढ़ी थी
कढ़ी चावल और मिस्सी रोटी लाजवाब थे
और जेब पर बोझ भी ज्यादा नही पड़ा
कोई अचरज नही की इतने सालों के बाद भी पहली पायदान पर टिका है
ढाबों का बेताज बादशाह
जालंधर का हवेली ढाबा

Friday, June 13, 2008

यह असंभव नहीं है



पहले एक बार सारे सवालों पर नज़र मार लें
भूख /भुखमरी अपोषण /कुपोषण जिंदा सच्चाई है
आधी से ज़्यादा जनता हर दिन बीस रुपये से कम पर जीने मजबूर है
जो बढ़ते खाने की कीमतों के चलते मुश्किल होता जा रहा है
बेरोजगारी के हल का कोई रास्ता नही नज़र आ रहा है
शहरी गरीब को सस्ते खाने और रोज़गार, दोनों की दरकार है
गोदामों में अन्न सड़ रहा है
हाँ बाबा आगे तो बढ़ो
ऐसा नहीं हो सकता कि इन्हीं बेरोजगार लोगों को दूसरों को भोजन देने की जिम्मेवारी सौंपी जाए
पिछली कड़ी में ऐसे कुछ लोगों का जिक्र हुआ था
कर्नाटक में अक्षय पात्र, अक्षय दोष, छत्तीसगढ़ में दान्तेर्श्वरी समूह इस काम मे लगे हैं
इन्हें सरकार १.३१ पैसे फी बच्चे के हिसाब से अनाज देती है
( 50 किलो चावल के भारतीय खाद्य निगम के हर बैग में औसतन 3 किलो कच्डा (मिट्टी ,कंकड़ ,कीलें) निकलता है )
जिसे करीबन ६ रुपये की लागत में ताज़ा खाना बना कर बच्चों को देते हैं
अगर शहरों में वंचित महिलायों के समूह इस काम को लें
तो आसानी से हर गली ,मुहल्लें में एक अन्नपूर्णा रसोई खुल सकती है
जहाँ पांच-छः रुपये में हर इंसान को भर पेट खाना दिया जा सकता है
(बाद में इसका विस्तार पूरे देश में हो सकता है)
सरकार को अनाज और ईंधन देना पड़ेगा
महिलाओं को काम और आमदनी का नया रास्ता मिलेगा
समाज को इसका संचालन अपने हाथ में लेना पड़ेगा
यह शेख चिल्ली नुमा योजना नही हैं
महारास्त्र में हम्माल संघ की महिलाएं हर दिन ६-३० रुपयों में ३०००० लोगों को खाना खिलाती हैं
बिना किसी सरकारी मदद के
तो इतना असंभव भी नहीं है यह सपना
कि किसी को भूखे पेट न रहना पड़े

Sunday, June 8, 2008

तारे जमीन पर



अगर मैं आपसे कहूँ कि हर दिन ५.९१ रुपये में बच्चों को भर पेट खाना दिया जा सकता है

तो आप नहीं मानेगें
पर बंगलोर के सारे सरकारी स्कूलों में बच्चों को ताजा बना गरमा गरम चावल, सब्जियों वाली साम्भर , दही के साथ मिलता है

वो भी स्टेनलेस स्टील के विशालकाय बर्तनों में औद्योगिक तरीके से बिना हाथ लगाये पकाया हुआ

जिसे बनने के दो घंटे के अन्दर खास किस्म के ट्रक हर स्कूल मे पहुंचाते हैं

कहने कि जरुरत नहीं कि इसकी वजह से बंगलोर के सरकारी स्कूलों में पहली जमात में बच्चों के प्रवेश की गति १८% बढ़ी जबकि आठवीं क्लास के बाद स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में २३% कमी आई

हर दिन ८३०००० बच्चों को दोपहर का भोजन मिलता है लगभग छः रुपये की लागत से

जिसमें से १.३१ रुपये सरकार से मिलते है

संस्था का नाम है ' अक्षय पात्र' जिसमें इस्कोन मन्दिर की साझेदारी है

कंप्यूटर की दुनिया के बड़े नाम भी मदद करतें है

इनफोसिस के निदेशक मोहन दास पाई का बड़ा निजी योगदान है

इस्कोन मन्दिर से वैचारिक मतभेद हो सकतें हैं



पर बच्चो को दोपहर का भोजन मिले

इस पर सोचने की जरुरत है

ऐसा नहीं कि और हिस्सों में प्रयास नही हो रहे

कर्नाटक में ही अक्षर दसोहा योजना में बच्चों को पोंगल, लेमन राइस के अलावा मीठा शीरा भी मिलता हैं

तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में सप्ताह मे एक बार उबला अंडा या फल भी मिलता है

छतीसगढ़ में इसे माताओं की संस्था 'दंतेश्वरी समूह' 1,14521 प्राथमिक विद्यालयों में चलाती है

लोग एम् जी रामचंद्रन को मिड डे मील योजना का जनक समझतें हैं

पर इसकी शुरुआत १९२५ में मद्रास कॉर्पोरेशन ने कर दी थी

आज कल तो तमिल नाडु सरकार अशक्त बुजुर्गों तथा गर्भवती महिलायों को भी भोजन देती है

अगर ६ रुपये में भोजन बनाया/ खिलाया जा सकता है

तो ज्यादातर बच्चे भूखे पेट स्कूल जाने के लिए क्यों अभिशप्त हैं

अगर पूरे मुल्क में हर बच्चे को स्वादिष्ट और पोषक खाना देना हो

तो पूरे साल की लागत आएगी ६००० करोड़ रुपये

यह असंभव राशि नही है

जिस देश में दुनिया भर के अमीर रहतें हैं

(आंकडे यह बताते हैं कि दुनिया के सबसे अमीर २० लोगों में से कई अपने मुल्क के हैं)

जहाँ दुनिया का सबसे महंगा मकान मुम्बई में बन रहा है

वहाँ किसी को भूखे पेट रहना पड़े

सबसे बड़ी त्रासदी है

Friday, June 6, 2008

मिड डे मील का अंक गणित


भोजन भट्ट के ढाबा पुराण से इतर पंजाब की सच्चाई कुछ और भी है

जी .टी. रोड पर लुधियाना

के पास खन्ना एशिया की सबसे बड़ी धान की मंडी है

मंडी के चारो और FCI की सरकारी खरीद के धन के बोरे खुले मे पड़े है

सड़ने के लिए
कहीं तिरपाल से ढंकने की रस्म अदायगी करने की कोशिश दिखती है

यही हाल पूरी जी. टी रोड के किनारे बने कच्चे गोदामों का है,

हरियाणा में भी यही स्थिति दिखती है

सरकारी खरीद का दस % हिस्सा इस तरह जाया हो जाता है

ऐसे देश में जहाँ भुखमरी से अभी तक निजात नहीं मिली है ,

बाल कुपोषण के आंकडे अपनी कहानी बताते हैं

unicef का कहना है कि दुनिया में आधी से ज्यादा बच्चों की मौतें भूख और कुपोषण से होंती है

इसमे मे भी अपना मुल्क लीडर है

हाल ही में जारी राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण ( एनएफएचएस -3 ) के हवाले से

तीन साल से कम उम्र के 45.9 प्रतिशत से ज़्यादा बच्चे underweight हैं

पाँच साल से ज्यादा उम्र के करीबन ६००० बच्चे हर दिन भुखमरी और कुपोषण से मरते हैं

दुनिया के 146 करोड़ अल्पपोषित बच्चों के एक तिहाई 57 करोड़ अपने देश में हैं

बच्चों के खाली पेट विद्यालय जाने का दुःख बयान करने की जरुरत नहीं

ऐसे में इस बात पर बहस नहीं हो सकती कि

दोपहर के भोजन अगर शाला परिसर में ही मिले

तो दुखियारे माँ बाप के अपने बच्चों को सुबह स्कूल जाने के लिये

राजी करना आसान होगा .
.
कहने को तो १९९५ में ही मिड डे भोजन की योजना कागजों पर शुरू हो गई थी

लेकिन २००१ में सर्वोच्च न्यायालय को मजबूरी में हुकुम देना पद

कि हर स्कूली बच्चे को पकाया हुआ खाना शाला में मिलना होगा

बहुत सारी राज्य सरकारें इसके बदले 'सूखा अनाज ' बच्चों में बाँटती थीं

जो अक्सर बच्चों के घर पहुँचने से पहले बस्ते से गिर जाता था

जहाँ मिड डे भोजन मिलता भी था

वहाँ से सडा/बासी खाना मिलने की शिकायतें मिलीं थीं

सुधार की बजाय सुनने मे आ रहा है

दिल्ली में यह बहस जोरों से चल रही है कि

गर्मागर्म पकाए खाने की सांसत में पड़ने की जगह बिस्कुट के पैकेट बच्चों में बांटे जाएं

जरुर बिस्कुट बनने वाली कम्पनियाँ खुश होंगी

कवि ने जब लिखा था कि

भूख लगी है तो सब्र कर, रोटी नही.तो क्या हुआ

आजकल दिल्ली में है जेरे -बहस ये मुद्दा

उन्हें पता नही था कि चालीस साल में इतनी प्रगति होगी

आगे रोटी बनाम बिस्कुट की बहस चलेगी

अगली कड़ी में -

'भूख का अर्थशास्त्र '

Tuesday, June 3, 2008

SORRY FOR THE INTERRUPTION



जबसे यह ब्लॉग शुरू किया है पुराने मित्रों से फिर से खतो किताबत शुरू हो गई है '' धन्य हैं महाराज , साइनाथ साहब सरकारी बदचलनी के बारे में लिख रहें है और आपको इस सड़ी गरमी में मूली का पराठा सूझ रहा है''जनाब हम तो आपको पढने लिखने वाला बन्दा समझते थे ,आप तो रसोइए निकले''''आपको मोटे लेंस वाले चश्मे से e.p.w. और seminar पढ़ते देखा था ,क्या पता था कि अब आप कुक बुक लिखने लगेंगे"'' अर्थशास्त्र और सांख्यकी पढने के बाद अमरीकी बाजारवाद का भंडाफोड़ करना चाहिए था ,आप तो सुपरमार्केट में डोसा खरीदने लगे".और आखिर में '' हम तो सोचते थे कि आप अरुन्धती राय की तर्ज़ पर नव साम्राज्यवाद के बारे में लिखेंगे , पर आप तो तरला दलाल निकले.''
मैं नतमस्तक हूँ , पर हुजूर एक छोटी सी कहानी सुन लीजिये
बहुत पुरानी बात भी नही है.पिछले दशक का ही कोई साल था
दफ्तर से एक शाम पत्र मिला कि आप को infantry रोड पर g-2 मकान छः महीने के लिए alott किया जाता है अतः no.g-14 तुरन्त खाली कर दें. लगा दुनिया की सबसे बड़ी नेमत मिल गई है. नया मकान ground floor पर था,एक बेडरुम ,किचन बाथरूम उस के साथ एक छोटी सी बैठक भी जुड़ी थी
शादी के बाद एक साल से हम लोग दूसरे माले पर एक कमरे (g-14) के निवास में रह रहे थे,जिसके बीच में परदा खींच कर थोडी ओट सी कर ली गई थी.
उस एक कमरे मे ही सारी गृहस्थी थी, दो सिंगल बेड को जोड़ कर बिस्तर बना लिया गया था,दो बेंत की कुर्सिया थीं जो बहु काजी थीं
रसोइं में किताबें भरी थी , गैस की लम्बी वेटिंग लिस्ट थी
पुरानी किताबों ,पत्रिकायों के अलावा जब श्यामल नारायण रिज़र्व बैंक की नौकरी को छोड़ इलाहाबाद वकालत करने चले गए तो सिविल सर्विस की तैयारी की अपनी सारी पुस्तकें छोड़ गए थे.
हाल यह था कि उस कमरें में कभी कोई पुराना मित्र / परिचित आ जाए तो हम दोनों को जल्दी से अधखाई थाली खाट के नीचे सरकानी पड़ती थी.
ऐसा नही था कि बाहर मकान नहीं खोजे पर वे हमारी पहुँच के बाहर थे
आसपास छोटे से दो बेडरूम के फ्लैट भी २५०० से काम किराये पर नही मिलते .
साथ मे दस महीने का किराया अडवांस मांगते थे.
२५००० रुपये नव दम्पति के हैसियत के बाहर थे
दफ्तर से 600-700 रुपये मकान किराये के भत्ते के नाम पर मिलता था
दूर जाना सम्भव नही था
अपने पास स्कूटर तो दूर साइकिल भी नहीं थी.
तो नया मकान (छः महीने के लिए ही सही) सौगात से कम नहीं था.
दफ्तर से लौटते ही पति पत्नी ने सोचा कि कौन दूर जाना है ,दो मंजिल और 30 सीढियों की ही तो बात है , सामन आज ही नए माकन में shift कर लेंते हैं
कपड़े बर्तन भांडे समेटे ,चादरों में गत्त्थर बांधे और सीढियों के रस्ते नए घर में उतरने लगे
शुरू में उत्साह था ,चार पाँच चक्कर तो लगा लिए ,लेकिन जब किताबों की बारी आई तो हिम्मत जवाब देने लगी. किताबें इतनी भारी होंगी ऐसा सोचा नही था पता नही पुराने दिनों में बौद्ध भिख्शु कैसे पोथियां ढोकर भारत से चीन ले गए होंगे लेकिन किताबों को छोड़ा भी नही जा सकता था ,रोते गाते किसी तरह दसियों चक्कर सींढिंयोँ पर ऊपर नीचे कर सारी किताबें नए मकान में पहुँचा हीं दी
लेकिन हम दोनों बुरी तरह थक गए थे , टांगे जवाब दे रहीं थी हाथ उठते नही थे
सुरमई शाम ढल चुकी थी , थोडी देर तो दोनों लोग औंधे पड़े रहे पर थोड़ा आराम मिलने पर भूख भी लगने लगी .घर में सामान चारों और बेतरतीब फैला था
जहाँ तक खाना बनाने का सवाल था , दोनों ही नौसिखिये थे
muir होस्टल की मेस जब बंद होती थी तो आलोक सिंह और मैं सोया के नुट्री नुगेट डाल कर तहरी नुमा पुलाव बना लेते थे था. चीनी (सुधीर गुप्ता) मैगी में अंडा डाल कर कुछ fried noodle जैसा बना leta था. विमल और प्रमोद के डेरे पर खिचडी एक दो बार बनाईं थी.
यही हाल पत्नी का भी था. होस्टल में पढी थीं .Mphil की पढ़ाई के साथ खाना बनाने की नौबत नही आई थी, सो अब क्या करें .
गृहलक्ष्मी ने सुझाव दिया कि बाजू में शंबाघ होटल है , दस बजने वाले हैं, देखो कुछ भोजन शायद मिल जाए. यह प्रक्टिकल सलाह थी . बंगलोर के होटलों में पन्द्रह बीस रुपये में भर पेट स्वादिष्ट खाना मिल जाता था.
पर होटल की ओर कदम नहीं उठे . दिल में एक फाँस लगी थी. हुआ यह था कि एक दिन m.g.रोड पर भटकते हुए पुरानी पत्रिकायों के स्टाल में विदेशी 'good housekeeping' की एक प्रति 5 रुपये में हाथ लग गई थी . निगाहें रेसिपे सेक्शन में एक डिश पर अटक गयीं थीं . इसमे उबले अण्डों का प्रयोग किया गया था .नाम था 'Devilled eggs'
पता नही कौन सी घड़ी थी
बदन थका था पर दिल काम कर रहा था. बजाय होटल जाने के कदम किचन में घुस गए .चारों ओर बिखरे कोहराम को भूल कर अंडे उबालने को रखे.
शादी में एक ओवेन मिला था ,बड़ा गोलमटोल almunium का ढांचा ,जिसमे केक बन सकता था. उसको बिखरे सामान में से खोज कर ओन किया और ''Devilled eggs'' बनाये .
पत्नी थक कर भूख प्यास भूल कर सो चुकीं थीं .
उनको जगाया और तश्तरी में ''Devilled eggs'' पेश किए
उन्हें पहले तो विश्वास नही हुआ,


फिर माथा पीट कर बोलीं 'धन्य हो भोजन भट्ट'

अमृतसर का जायका


वैसे तो गुरु की नगरी मे लंगर के प्रसाद से अच्छा कुछ ही नही सकता
पर अम्बरसरिये (अमृतसर वाले) तो लगता है घर में खाना खाने में विश्वास नही रखते
नाश्ते में कुलचा चना ,पूरी छोले लेना हो तो हर गली में बने कुलचे वालों से ले लें या
चाहें तो मकबूल रोड के कोने पर बैठे सरदार जी से ले लें ,लारेंस रोड पर भी अच्छा मिलता है
इतना खस्ता ,कुरकुरा आलू, प्याज वाला तन्दूरी कुलचा और साथ में छोले
और इमली की चटनी या हरी चटनी और कटा प्याज अमृत्सरी लस्सी का जवाब नहीं अद्भुत स्वाद है जो कहीं और नही मिलता .
एकबार चंडीगढ़ में एक सज्जन अमृतसर से लाये
कुलचे चने ३४ सेक्टर में बेच रहे थे पर हमे तो बेस्वाद लगे
पूरी/कचोरी खानी हो 'कन्हैया ' का ढाबा आजमा लें जलेबी, फिरनी चखना हो तो कटरा अहलुवालिया में गुरुदास जलेबीवाले की दुकान पर धावा बोलें नान वेज का शौक रखतें हो तो अमृत्सरी मछली (तली हुई)
खाए बिना शहर न छोडें -माखन ढाबा कीमा नान-पाल ढाबा .मटन करी-प्रकाश ढाबा -ये जगहें नोट कर लें
पर लगता है हम लोग अमृतसर के गली कूँचों में भटक गए
जाना था townhall के पास भरवां दा ढाबा, पहुँच गए केसर दा ढाबा
फिरनी ललचा रही थी पर हमें तो अपने ढाबे की स्पेशल थाली खानी थी
दफ्तर ने नए रंगरूटों को शहर घुमाने की ड्यूटी लगाई थी
बहती गंगा में हाथ धोने ढाबे में घुस गए
पर यहाँ तो दूसरी ही गंगा बह रही थी रोटी पर मक्खन हो तो ठीक है
काली मा की दाल में घी का होना लाजमी है
पर पनीर की सब्जी और आलू गोभी की तरकारी भी देसी घी से सराबोर थी
गाजर का हलवा बदाम और घी से लबरेज था \
बस दही भल्ला ही इस बारिश से बचा था
खाना अत्यन्त स्वादिष्ट था
नए रंगरूट गदगद थे
पर मेरी समझ में यह बात आ गई कि दिल्ली के एस्कोर्ट्स अस्पताल ने अपनी पहली शाखा अमृतसर में क्यों खोली है
सोचा घर पहुँच कर कोलेस्ट्रोल का टेस्ट करवा लूँगा

Monday, June 2, 2008

पंजाबी ढाबा


कहतें हैं कि जब सत्यजित राय 'पाथेर पांचाली ' (song of the road)बना रहे थे तो पैसे कम पड़ने पर तब के बंगाल के संवेदनशील मुख्यमंत्री ने p.w.d. विभाग से कुछ मदद करादी थी आजकल तो कई बड़े ढाबे फिल्म स्पांसर करने मे सक्षम हैं वह दूसरा जमाना था जब ढाबे शहर के बाहर सड़क किनारे लगे ट्रकों की कतार से पहचाने जाते थे थके हारे ड्राईवर ने हैंडपंप पर हाथ मुहं धोया , चारपाई पर लेट कर टाँगे फैलाई नही कि छोटू पटरा बिछा देता था और ताजा गरमा गरम खाना परोस देता था ,आर्डर लेने की जरुरत नही थी अब तो बड़े शहरों के बीच बने स्टार होटलों में भी नफीस ढाबे खुलने लगे हैं .बड़ी मेहनत से ढाबे का माहौल बनने की कोशिश होती है , पुराने ट्रक की chasis , बे तरतीब पड़े मूढे, ब्लैक बोर्ड पर लिखा मेनू और उस पर लिखे पांच तारा दाम एकबार दिल्ली के क्लारिजस होटल के 'ढाबा 'रेस्तोरंत का बिल देखकर संगिनी ने मेजबान से कह दिया कि इतने में तो बंगलोर की हवाई जहाज दो टिकटें आ जातीं . लेकिन असली ढाबे तो अभी भी हाईवे पर ही मिलते हैं, पहचाने कैसे कुछ लोग कहते है असली ढाबे में मेनू कार्ड नहीं होना और गर्मागर्म खाने के सीमित व्यंजन उसकी पहचान हैंअब तो दक्षिण भारत में भी पंजाबी ढाबा दिख जाता है पर चलते हैं असली पंजाबी ढाबों की तलाश मेंपहली कड़ी में अमृतसर का भरवां दा ढाबा

Monday, May 26, 2008

ढाबे किसम किसम के




जब नील आर्म स्ट्रोंग चाँद पर पहली बार पहुंचे तो जोर की भूख लगी थी
सुरक्षा के लिए साथ गए इंसपेक्टर मातादीन ने सुझाव दिया कि जनाब होटल में चलकर कुछ ले लेते हेंचार कदम भी न चले थे कि 'शेरे पंजाब ढाबा ' का बोर्ड नज़र आ गया
चारपाई पर बैठ कर दाल fry और तन्दूरी चिकन खाया ,लस्सी पी और तृप्त होकर अपने रॉकेट में वापस बैठ गए .
लौटकर जब अमेरिका आए तो रेडियो ,अन्य मीडिया के द्वारा उनकी सेहत का राज जानकर अमरीका के हर शहर में ढाबे खुलने लगे .
अब तो कहते हैं अन्तार्तिका में पंजाबी ढाबा खोलने के लिए पहली अर्जी संयुक्त राष्ट्र संघ में दाखिल हो गई है
देखा देखी हिंदुस्तान के बहुत से शहरों में भी ढाबे खुलने लगे हैं
बस यहाँ किसी अर्जी की ज़रूरत नहीं पड़ती तो चलें सबसे अच्छे ढाबों की सैर पर

Wednesday, May 21, 2008

मुर्थल के पराठे


दिल्ली की पराठे वाली गली से निराश हो कर
 अपनी राम कहानी दिल्ली वालों को सुनाई
वे बोले कि उससे अच्छे पराठे विक्रम होटल के सामने लाजपत नगर में मिलते हैं
औरों की सलाह थी कि आई टी ओ के सामने या मूलचंद फ्लाई ओवर के नीचे भी नज़र मार लें
पर ज्यादातर लोग इस बात पर सहमत थे कि सबसे अच्छे पराठे दिल्ली से ५० कि मी दूर मुर्थल में मिलेंगे
पर मुर्थल है कहाँ ,प
ता चला अमृतसर वाली जी टी रोड पर निकल जाइये सिंधु बॉर्डर क्रॉस कर हरियाणा में प्रवेश कीजिये
और करीब एक घंटे बाद बायीं ओर मुर्थल आएगा
तो चल पड़े पराठों की तलाश कि दूसरी कड़ी पर
दिल्ली से निकलना इतना आसान नहीं है ,इसलिए एक घंटे की तय यात्रा लम्बी हो गई
 कहीं मुर्थल लिखा तो नज़र नहीं आया पर ढाबों की एक लम्बी कतार दिखी
गुलशन,न्यू गुलशन, अरोड़ा ,पहलवान और मिलते जुलते नामों के ढाबे
सबके सामने टेंट कनात लगा कर सड़क तक विस्तार कर लिया गया था
ट्रक तो कम दिखे पर सैलानियों की कारें लगी थीं
उतर कर ढाबे की तरफ बढे कि किसी ने इशारा किया इधर आ जाईये
टेबल लगी थी ,मेज पर स्टील के बर्त्तन में पंचरंगा अचार ,हरी मिर्च और नमक , मिर्च रखे थे
वेटर से पूछा कि क्या मिलेगा ,जवाब में आलू,प्याज,मूली,गोभी,पनीर के पराठे गिना दिए गए
सोचा दो दो किस्म के मंगा लेते हैं फिर देखेंगे
आगे देखने कि नौबत ही नही आई
दो मिनट के अन्दर स्टील की थाली में दो विशालकाय गर्मागर्म तन्दूरी पराठे
 उनके ऊपर ढेर सारा सफ़ेद
मक्खन .साथ में ताजा जमाया हुआ दही .
पराठे तंदूर से निकले थे ,तोड़ने पर भाप निकल रही थी पर स्वाद लाजवाब था
आलू प्याज के पराठे मुझे अच्छे लगे पर साथी को मूली के पराठे रास आए
उनका कहना था कि अन्दर का भरवां मिश्रण पहले भुन कर फिर पराठे के अन्दर भर कर उसे तंदूर में सेंका गया है .
हो सकता है कि स्वाद का राज कुछ और रहा हो पर यात्रा सफल रही
उसके बाद कई बार मुर्थल से गुजरना हुआ और हर बार निगाह उधर मुड जाती थी
जबान को उस स्वाद का इंतजार रहता था पंजाब में बहुत सारी यात्राएं की पर वह स्वाद न मिला
हाँ एक बार जालंधर - चंडीगढ़ के रास्ते में नवां शहर के पास
 नहर के किनारे बने 'बाबे दा ढाबा' में तवे पर बने गोभी के पराठों की याद अभी भी है
छोटी सी जगह थी फ़रवरी का महीना था ,जल्दी नही थी ,
आराम से बैठ कर तवे पर बने खस्ता पराठे खाए दूध वाली चाय पी और तब बढे

Tuesday, May 20, 2008

पराठे वाली गली से निकल कर



नाम बड़े और दर्शन थोड़े
यह अनुभव हुआ ,अस्सी के दशक में पराठे वाली गली से गुजर कर
विश्वजीत प्रधान और भोजन भट्ट एक दिन गए पराठे वाली गली गए थे
(उन दिनों विश्वजीत फिल्मों में खलनायक नही बने थे और 'दस्ता' और 'जन नाट्य मंच' के नुक्कड़ नाटकों के रस्ते दिल्ली रंगमंच में पाँव ज़माने की कोशिश कर रहे थे )
मेरठ से चल कर बस अड्डा और फ़िर चाँदनी चौक के लिए फटफटिया ली.
वहाँ से पराठे वाली गली के लिए रिक्शा (मेट्रो ट्रेन अभी दिल्ली में नहीं उतरी थी )
भीड़ उन दिनों भी कम नहीं थी ,
बस जाड़े के खुशनुमा मौसम के सहारे. लोगों से पूछ कर नटराज कैफे के सामने वाली संकरी गली मी पहुँच गए.
गली के मुहाने पर कँवर जी भागीरथ्मल की नमकीन की दुकान है.
सोच कर आए थे कि ढेर सारी दुकाने होंगी , चहल पहल होगी ,तरह तरह जायके मिलेंगे
 पर यह क्या .ढाबे जैसी चार पांच दुकाने थी .
(१९८४ के दंगों के बाद चार पांच दुकाने ही बच पाई थीं ,वे भी शायद एक ही परिवार की थीं).
दुकानों में महान विभूतियों के चित्र लगे थे .नेहरूजी की तस्वीर याद आती है
पत्थर की सिल पर एक शख्स आटे की लोई में पीठी भर कर कढाई में घी डाल कर तल रहा था .
तंदूर के पराठे तो हमने सुने थे,
 तवे पर बने पराठे घर पर खाए ही थे पर कोयले की सिगरी पर कढाई में तले पराठे ,
वो भी दिल्ली शहर के बीचोबीच
अजीब नज़ारा था
सोचा कि दिल्ली के नज़ारे दूर से ही भले
पर दुकान पर बैठने के बाद मेनू देख कर थोडी तसल्ली हुई

हर जगह मिलने वाले आलू गोभी मूली के पराठों से हट कर
 २०-२५ तरह के पराठे उपलब्ध थेखुरचन पराठा ,लहसुन पराठा , मिक्स्ड पराठा , मशरूम पराठा , मेथी पराठा , पालक पराठा , गाजर पराठा , पनीर पराठा
मेवों से भरे पराठे याद हैं

परांठे के साथ मक्खन , इमली की चटनी , मूली शलगम का अचार , आलू की रसे वाली सब्जी मिली
पराठे करारे थे पर दिव्य नही ,खास अनुभूति नहीं हुई
इतनी लम्बी यात्रा के बाद पहुंचे थे पर विशेष आनंद नही मिला

उन दिनों तो खालिस शुद्ध घी मे बने पराठे खा भी लेते थे
पर अब तो पेट और सेहत दोनों ही इजाज़त नही देते
अगली बार मुर्थल के पराठे

Monday, May 12, 2008

असली हैदराबादी बिरयानी की खोज में


असली हैदराबादी बिरयानी की खोज में
वैसे तो यह मिथ अब तक टूट जाना चाहिए की दक्षिण में बसने वाले अधिकतर शाकाहारी होते हैं
सच्चाई इसके उलट है.
चारो प्रदेशों में मांस के विविध व्यंजन बनते है शौक से परोसे औरखाए जाते हैं
दरअसल तमिल जन जीवन और उससे जुड़े समाज और माहौल पर
अल्पसंख्यक ब्राह्मण वर्ग का इतना ज्यादा प्रभाव रहा है
कि हर शख्स दक्षिण को शाकाहारी भोजन की कार्यस्थली समझता है.
गावों तक में महाभोज या सामाजिक उत्सवों में बिना नान वेज खाने के तृप्ति नही होती
कर्णाटक और आंध्र प्रदेश में मटन बिरयानी की वही महत्ता है
 जो और जगहों पर पूरी/कचौरी आलू /कद्दू की सब्जी की दावत की है.
बिरयानी शब्द शायद फारसी के beryā(n) (بریان) से आया है,जिसका अर्थ है भुना /तला हुआ
संभवतः मुग़लों के साथ पश्चिम एशिया से आए तोहफों में बिरयानी का भी शुमार होना चाहिए
जैसे जैसे मुग़ल सल्तनत के कदम बढे ,हिंदुस्तान के हर हिस्से में बिरयानी की खुशबू फ़ैल गई.
अब तो लखनऊ , भोपाल से लेकर केरल के मोपलाह लोग भी बिरयानी पर अपना कापी राइट मानते हैं
लेकिन जैसे किलों में चित्तोड़ गढ़ का नाम है, वैसे ही हैदराबादी बिरयानी ज्यादा मशहूर है.
हैदराबादी बिरयानी दो तरीके से बनती है कच्ची बिरयानी में कच्चे गोश्त की अखनी के साथ चावल और मसाले हांडी में सील कर दिए जाते हैं पकने के लिए,
जबकि पक्की बिरयानी में तैयार मीत और आधे उबले चावलों कर एक के ऊपर एक परत लगाई जाती है .
बिरयानी को अक्सर मिर्ची के सालन की तरी और रायता के साथ परसते हैं .
लेकिन असली हैदराबादी बिरयानी मिलेगी कहाँ
चलें खोज में...

Friday, May 9, 2008

मुट्टा डोसा



मुट्टा डोसा
वैसे तो आपने मसाला डोसा और उत्तपम खाया ही होगा .
शायद पनीर डोसा या कीमा डोसा चखने का अवसर भी मिला हो,
पर मुट्टा डोसा ,यह क्या बला है .
किसी कुक बुक या टी.वी .शो में भी इसका जिक्र नहीं आता है.
दरअसल मुट्टा डोसा (माने अंडा डोसा) जनता जनार्दन का डोसा है,
 जो सिर्फ़ गलिओं और बाजारों में ठेलों पर बिकता है.
 सस्ता .गुणकारी स्वादिष्ट स्ट्रीट फ़ूड.
अगर किसी शहर की आत्मा
उसके गली कुंचों में बिकने वाले ठेले/खोमचे के चटपटे खाने में बसती है
तो मुट्टा डोसा बंगलोर/मद्रास का खाने का बादशाह है.
बंगलोर में बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन के बीच का मजेस्टिक इलाका हो
या शिवाजीनगर -इन्फंट्री रोड के पास की सड़कें ,यहाँ मुट्टा डोसा ही चलता है.
रात में बस से उतरने वाले मुसाफिर हों
 या सिनेमा का आखिरी शो देखकर निकले दर्शक. भू
खी आत्माओं का यही सहारा है.
रात मे ग्यारह बजे के बाद किसी ठेले के आसपास भीड़ देखें,
तलने की खुशबू ख़ुद ब ख़ुद आपको खींच ले जायेगी.
अनवरत जलती अंगीठी पर काले पड़ चुके तवे पर पानी एक बड़ा चमच तेल डाला जाएगा
तेल गरम होने पर एक कटोरी डोसा मिश्रण ,दोसे की शक्ल में फैलाया जाएगा
फिर असली कारीगरी शुरू होगी.
बगल में रखे अंडे की ट्रे से एक अंडा निकला जायेगा
और कलाई की एक ही घुमाव में उसे दोसे के ऊपर फोड़ कर ,
उसे कटे प्याज.धनिया ,मिर्च से ढक देंगे .
अब बारी है गुप्त मसाले को छिड़कने कीडोसा पलटा जाएगा .
आप बेताब होंगे .चटनी के साथ प्लेट में आपको परस दिया.
चख कर बताइए ,कैसा है.
विधि
१ कप डोसा मिश्रण *१ अंडा
कटी हुई प्याज.धनिया, हरी मिर्चपिसा जीरा ,मिर्च,नमक
१ चमच तेल पहले नॉन स्टिक तवे को आधी कटी प्याज से पोंछ कर साफ कर लें
फ़िर १/२ चमच तेल डालकर गरम होने देंअब तवे पर डोसा मिश्रण फैलायें
 १ कटोरी में अंडे को फेंट कर मसाले व कटी हुई प्याज.धनिया, हरी मिर्च के साथ मिला लें इसे अब दोसे के ऊपर पलट दें १/२चमच् तेल साइड से डालें
१ मिनट बाद दोसे को तवे पर पलट कर अंडे के पक जाने तक सेंके चटनी के साथ आनंद से खाएं


चित्र साभार
*डोसा मिश्रण आजकल महानगरों में बड़ी दुकानों में आसानी से मिल जाता हैघर में बनाना हो तो साधारण चावल और उरद की दाल को ३:१ के अनुपात मे रात भर भिगो कर सुबह पींस लेंचंडीगढ़ में ४७ सेक्टर के बाज़ार में सिंगला स्टोर्स और जैन भाई की दुकान पर तैयार मिश्रण मिल जाता है

Thursday, May 8, 2008

अक्की रोटी


मंगलोर जाकर भी न तो नीर डोसा खाने को मिला
न अक्की रोटी .
कोरी रोटी नामका रेस्तौरांत जरुर दिखा.
नैवेद्यम रेस्तरां में रागी रोटी थाली में खाने को मिली
पर उसके ऊपर घी देखकर मज़ा किरकिरा हो गया.
रागी मुद्डे (रागी के आटे के बने लड्डू जैसे गोले) जिसे वेज/नानवेज करी या रसम के साथ खाते हैं,
पूर्व प्रधान मंत्री देवेगौडा जी का प्रिया अल्पाहार है.
लगा मंगलोर की यात्रा बेकार हो
गई संगिनी ने कहा निराश क्यों होते हो ,घर जाकर अक्की रोटी बना दूंगी
अक्की रोटी -विधि
2 कप चावल का आता१/२ कप घिसा हुआ ताजा नारियल बारीक़ कटी प्याज ,हरी मिर्च ,धनिया,नमक अंदाज से
(चाहें तो गाजर घिस लें)१/२ कप पानीउपयोग हो रहा तेल -आटे में सब सामान मिला कर थोड़े कुनकुने पानी में गूँथ लें हथेली में जरा सा तेल लगाकर बड़े नीम्बू/संतरे की साइज़ की लोई लेंगरम नॉन स्टिक तवे पर जरा सा तेल फैला लें उसके ऊपर लोई को हाथ से रोटी की शक्ल देकर फैला दें रोटी के ऊपर जरा सा तेल चुपड देंढक्कन से ढँक कर २-३ मिनट धीमी आंच पर पकाएं जबतक रंग खुशनुमा क्रीम रंग का हो जाए अब ढक्कन हटा कर पलट कट ३-४ मिनट तक सेंके कुरकरा होने तक
अक्की रोटी  तैयार है .
लाल मिर्च लहसुन धनिया की चटनी के साथ खाएं



*कोरी रोटी बुन्त समुदाय की चावल के आटे से बनी पापड़ जैसी रोटी को कहते हैं ,
जिसके टुकड़े चिकन करी में डुबोकर खाने का रिवाज है.
*रागी रोटी -रागी आटे में कटी प्याज,हरी मिर्च मिलाकर बनने वाली रोटी है
 जिसे कर्णाटक में नाश्ते में शौक से खाते हैं,गुण भी गाते हैं

Wednesday, May 7, 2008

कल्याण मंडप के दूसरे भाग में मेज कुर्सियों पर पंगत जमी .
परोसनेवालों ने पहले सफ़ेद कागज का लंबा मेजपोश बिछाया,
फिर उसके ऊपर पानी से धुले केले के पत्ते बिछाए गए.
बाल्टियांभर कर लोग परोसने लगे उत्सुकता थी
देखें यहाँ क्या मिलेगा.
शायद बंगलोर-मैसूर क्षेत्र की तरह नमक, अचार ,भिगोई हुई मुंग की दल का सलाद से शुरुआत हो.
फ़िर बिसेबेल्ले भात ,चावल, संभार,रसम और अंत में दही चावल और मिठाई .
लेकिन यहाँ तो कुछ और ही माजरा था.
रुमाली रोटी ,पुलाव , सफ़ेद चने की सब्जी ,लगा शायद पनीर बटर मसाला भी परोसा जाएगा .
अब दिल्ली दूर नही वाला दृश्य था .
उडुपी -पंजाब का संगम होने सा लगा.
फ़िर दृश्य पलटा. जो गीली सब्जी अब परोसी गई
 वह नारियल के रसे में  पकी कटहल की तरकारी थी.
पड़ोसी केरल का प्रभाव दिखा कुद्रुन की सूखी सब्जी और मसालेदार बीन्स की तरकारी
साथ में केरल शैली के उबले चावल.
 कुछ कुछ स्वाद बदला.मंगलोरी स्वाद की साम्भर और दही भी परसे गए.
साथ में अचार.अंत में मिठाई.
पहले इदिअप्पम (सेवैयं जैसा) के ऊपर मीठी दूध की खीर.
लेकिन अभी कुछ और बाकी था
पूर्रनपोली के साथ केले की मीठी रसे वाली खीर.
तृप्ति का अहसास हो रहा था .आइसक्रीम की और देखा भी नहीं.
अब सच्चा आशीर्वाद दूल्हा दुल्हन के लिए निकला .मंगलमय हो इनका जीवन...


अगली बारी अक्की रोटी
अब पहुंचे शादी के मंडप में.
आयोजन गोकर्न्नाथ मन्दिर परिसर में बने कल्याण मंडप मैं किया गया था
ट्रेन के देर से आने से ९.२३ बजे का मुहूर्त तो बीत चुका था ,
यानि वधू के गले में 'ताली'/मंगलसूत्र पहनने की घड़ी.
अब समय था मंच पर जाकर दूल्हा दुल्हिन को बधाई देने का.
निमंत्रण पत्र में मनाही लिखी थी 'उपहार न लायें, फूल भी नहीं '.
अचरज इस बात का हुआ की इस बात का अक्षरशः पालन हो रहा था.
हर व्यक्ति शांतिपूर्वक खली हाथ मंच पर जाकर अक्षत/रोली से नव दम्पति को आशीर्वाद दे रहा था .
शालीन व्यवस्था को देखर दिल खुश हो गया .
बारी थी विवाह के भोजन की .

Tuesday, May 6, 2008

मंगलोर की ओर

मौका मिला मंगलोर जाने का ,
अवसर था सहयोगी के बेटे के विवाह का
विदेश में बसा डॉक्टर बेटा कंप्यूटर इंजिनियर लड़की ब्याहने देस आया
था सो चल पड़े समुद्र तट पर बसे सुरम्य क्षेत्र की ओर
भोजन भट्ट की छिपी इच्छा थी की कोंकण प्रदेश का विवाह भोज जीमने की
देखें यहाँ क्या मिलता है शादी के पकवानों मेंआख़िर मंगलोर उदिपी के पास है ,
जहाँ के रेस्तौरन्ट्स से सारे देश ने इडली, डोसा खाना सीखा है
 क्या पता नीर डोसा, अक्की रोटी ,कोरी रोटी जैसे नए व्यंजन खाने का मौका मिले
पन्द्रह घंटे की ट्रेन यात्रा के बाद मिला इडली ,वडा का नाश्ता ,साथ में नारियल की चटनी और साम्भर,
अंत में गरम फिल्टर काफी .
पहला परिचय अच्छा था पर विशिष्ट नहीं.दक्षिण में तो हर जगह यह नाश्ता मिलता है,
बदलता है तो चटनी और साम्भर का स्वाद.
चटनी में कहीं ताजा घिसे नारियल का जायका मिलता है तो कहीं चने की दाल का पुट ज्यादा होता है
 पर बघार अवश्य राइ या करी पत्ता से लगाई जाती है .
 साम्भर में मूली या स्थानीय सब्जी मिल जाती है ,drumstick अक्सर
 तो नाश्ता अच्छा था
अगर पंकज मिश्रा 'बटर चिकन इन लुधिआना' में इडली ,वडा के पारंपरिक दक्षिण भारतीय नाश्ते को
शाकाहारी नाश्ते की सबसे अच्छी मिसाल बतातें हैं ,तो ग़लत नही कहते.

Monday, May 5, 2008

भोजन भट्ट की रसोई

पहली नज़र में यह भले ही खाए हुए/अघाये हुए जने का शब्द विलास लगे पर अच्छा खाना भी अच्छे जीवन की चाहत के साथ जुडा है खाने का मिजाज बिगड़े तो ज़िंदगी का हिसाब बिगड़ते देर नहीं लगतीरहा सवाल उसके लिए अर्थ जुगाड़ने का तो ऋषि जन कह चुके हैं " रिणं कृत्वा घृतं पिबेत "तो शुरू करें भोजन भट्ट की रसोईपहली यात्रा मंगलोर की ओर