Tuesday, May 20, 2008

पराठे वाली गली से निकल कर



नाम बड़े और दर्शन थोड़े
यह अनुभव हुआ ,अस्सी के दशक में पराठे वाली गली से गुजर कर
विश्वजीत प्रधान और भोजन भट्ट एक दिन गए पराठे वाली गली गए थे
(उन दिनों विश्वजीत फिल्मों में खलनायक नही बने थे और 'दस्ता' और 'जन नाट्य मंच' के नुक्कड़ नाटकों के रस्ते दिल्ली रंगमंच में पाँव ज़माने की कोशिश कर रहे थे )
मेरठ से चल कर बस अड्डा और फ़िर चाँदनी चौक के लिए फटफटिया ली.
वहाँ से पराठे वाली गली के लिए रिक्शा (मेट्रो ट्रेन अभी दिल्ली में नहीं उतरी थी )
भीड़ उन दिनों भी कम नहीं थी ,
बस जाड़े के खुशनुमा मौसम के सहारे. लोगों से पूछ कर नटराज कैफे के सामने वाली संकरी गली मी पहुँच गए.
गली के मुहाने पर कँवर जी भागीरथ्मल की नमकीन की दुकान है.
सोच कर आए थे कि ढेर सारी दुकाने होंगी , चहल पहल होगी ,तरह तरह जायके मिलेंगे
 पर यह क्या .ढाबे जैसी चार पांच दुकाने थी .
(१९८४ के दंगों के बाद चार पांच दुकाने ही बच पाई थीं ,वे भी शायद एक ही परिवार की थीं).
दुकानों में महान विभूतियों के चित्र लगे थे .नेहरूजी की तस्वीर याद आती है
पत्थर की सिल पर एक शख्स आटे की लोई में पीठी भर कर कढाई में घी डाल कर तल रहा था .
तंदूर के पराठे तो हमने सुने थे,
 तवे पर बने पराठे घर पर खाए ही थे पर कोयले की सिगरी पर कढाई में तले पराठे ,
वो भी दिल्ली शहर के बीचोबीच
अजीब नज़ारा था
सोचा कि दिल्ली के नज़ारे दूर से ही भले
पर दुकान पर बैठने के बाद मेनू देख कर थोडी तसल्ली हुई

हर जगह मिलने वाले आलू गोभी मूली के पराठों से हट कर
 २०-२५ तरह के पराठे उपलब्ध थेखुरचन पराठा ,लहसुन पराठा , मिक्स्ड पराठा , मशरूम पराठा , मेथी पराठा , पालक पराठा , गाजर पराठा , पनीर पराठा
मेवों से भरे पराठे याद हैं

परांठे के साथ मक्खन , इमली की चटनी , मूली शलगम का अचार , आलू की रसे वाली सब्जी मिली
पराठे करारे थे पर दिव्य नही ,खास अनुभूति नहीं हुई
इतनी लम्बी यात्रा के बाद पहुंचे थे पर विशेष आनंद नही मिला

उन दिनों तो खालिस शुद्ध घी मे बने पराठे खा भी लेते थे
पर अब तो पेट और सेहत दोनों ही इजाज़त नही देते
अगली बार मुर्थल के पराठे

1 comment:

bhojan bhatt said...

माफ़ी चाहता हूँ
याददाश्त धोखा दे गई
पराठेवाली गली में प्याज लहसुन का पराठा मिलने का सवाल ही नहीं उठता
वहाँ के ब्राह्मण मालिकान तो प्याज लहसुन तक का प्रयोग नहीं करते
लेकिन स्वाद अच्छा था