Wednesday, May 21, 2008

मुर्थल के पराठे


दिल्ली की पराठे वाली गली से निराश हो कर
 अपनी राम कहानी दिल्ली वालों को सुनाई
वे बोले कि उससे अच्छे पराठे विक्रम होटल के सामने लाजपत नगर में मिलते हैं
औरों की सलाह थी कि आई टी ओ के सामने या मूलचंद फ्लाई ओवर के नीचे भी नज़र मार लें
पर ज्यादातर लोग इस बात पर सहमत थे कि सबसे अच्छे पराठे दिल्ली से ५० कि मी दूर मुर्थल में मिलेंगे
पर मुर्थल है कहाँ ,प
ता चला अमृतसर वाली जी टी रोड पर निकल जाइये सिंधु बॉर्डर क्रॉस कर हरियाणा में प्रवेश कीजिये
और करीब एक घंटे बाद बायीं ओर मुर्थल आएगा
तो चल पड़े पराठों की तलाश कि दूसरी कड़ी पर
दिल्ली से निकलना इतना आसान नहीं है ,इसलिए एक घंटे की तय यात्रा लम्बी हो गई
 कहीं मुर्थल लिखा तो नज़र नहीं आया पर ढाबों की एक लम्बी कतार दिखी
गुलशन,न्यू गुलशन, अरोड़ा ,पहलवान और मिलते जुलते नामों के ढाबे
सबके सामने टेंट कनात लगा कर सड़क तक विस्तार कर लिया गया था
ट्रक तो कम दिखे पर सैलानियों की कारें लगी थीं
उतर कर ढाबे की तरफ बढे कि किसी ने इशारा किया इधर आ जाईये
टेबल लगी थी ,मेज पर स्टील के बर्त्तन में पंचरंगा अचार ,हरी मिर्च और नमक , मिर्च रखे थे
वेटर से पूछा कि क्या मिलेगा ,जवाब में आलू,प्याज,मूली,गोभी,पनीर के पराठे गिना दिए गए
सोचा दो दो किस्म के मंगा लेते हैं फिर देखेंगे
आगे देखने कि नौबत ही नही आई
दो मिनट के अन्दर स्टील की थाली में दो विशालकाय गर्मागर्म तन्दूरी पराठे
 उनके ऊपर ढेर सारा सफ़ेद
मक्खन .साथ में ताजा जमाया हुआ दही .
पराठे तंदूर से निकले थे ,तोड़ने पर भाप निकल रही थी पर स्वाद लाजवाब था
आलू प्याज के पराठे मुझे अच्छे लगे पर साथी को मूली के पराठे रास आए
उनका कहना था कि अन्दर का भरवां मिश्रण पहले भुन कर फिर पराठे के अन्दर भर कर उसे तंदूर में सेंका गया है .
हो सकता है कि स्वाद का राज कुछ और रहा हो पर यात्रा सफल रही
उसके बाद कई बार मुर्थल से गुजरना हुआ और हर बार निगाह उधर मुड जाती थी
जबान को उस स्वाद का इंतजार रहता था पंजाब में बहुत सारी यात्राएं की पर वह स्वाद न मिला
हाँ एक बार जालंधर - चंडीगढ़ के रास्ते में नवां शहर के पास
 नहर के किनारे बने 'बाबे दा ढाबा' में तवे पर बने गोभी के पराठों की याद अभी भी है
छोटी सी जगह थी फ़रवरी का महीना था ,जल्दी नही थी ,
आराम से बैठ कर तवे पर बने खस्ता पराठे खाए दूध वाली चाय पी और तब बढे

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