Friday, July 30, 2010

मम्मी तुझे सलाम

तीन महीने तक गुर्दे की बीमारी से लड़ने के बाद आख़िरकार पिछले महीने चली गयीं
पूरी ज़िन्दगी को इतने उत्साह से जीने वाली मम्मी अंत में कितनी असहाय हो गयीं थीं
१९७१ में शुरू किये महिला विद्यालय की 28 वर्ष तक प्रधानाध्यापिका रहीं
पूरी ज़िन्दगी बच्चों का भविष्य संवारने में लगा दी
आखिरी दिन काफी तकलीफ में बीते
dialysis मशीन से मनिपाल अस्पताल का ICU वार्ड
तरह तरह के कष्टमय टेस्ट
आखिरी दिन हम सब ICU के कमरे के बाहर इंतज़ार करते रहे
लेकिन जब खबर मिली तो बिस्तर के चारो ओर नर्स ने पर्दा खींच दिया था
ज़िन्दगी का खेल ख़तम हो चुका था
मम्मी हमेशा कहतीं कि दुनिया के किसी भी कोने में रहो ,शाम को ज़रूर फोन कर देना
लेकिन खुद इतनी लम्बी यात्रा पर चलीं गयीं बिन बताये

मम्मी को अच्छे भोजन का शौक था
अच्छे भोजन और बेहतर जीवन के संस्कार का आग्रह रहता था
साल भर किसिम किसिम के अचार बनते ,रिश्तेदारों को पार्सल किये जाते

रसोई में हर दिन कुछ नया बने,स्वादिष्ट हो ,यह प्रयास रहता
पूरे सेवा काल में सुबह पांच बजे उठकर विद्यालय जाने से पहले सबका नाश्ता भोजन तैयार कर जातीं थीं
लेकिन डॉक्टरों के आदेश पर गुर्दे की बीमारी में बिना नमक का भोजन खाना पड़ा
घर में भी रुखी सूखी थाली देख कर कहतीं
बेटा हम लोगों को नफीस खाने की आदत है
कम से कम ताजा कटा सलाद और हरे धनिये की चटनी तो होनी चाहिए
लेकिन हालत बिगडती रही
अंत में पहले liquid diet फिर नली के सहारे खाद्य सामग्री दी जातीं थीं
पूरी ज़िन्दगी स्वाभिमान से जी थी
अब किसी पर निर्भर हो जीना उन्हें मंज़ूर न था
सो चली गयीं
ज़िन्दगी का धागा क्या टूटा
पूरा परिवार बिखर गया

Monday, April 19, 2010




डेढ़ रुपये में सांबर वडा खाना हो तो कहाँ जाये

दिल्ली में संसद भवन की कैंटीन में
आज भी डेढ़ रुपये में सांबर वडा मिलता है
२२ रुपये में मटन करी वाली थाली
डेढ़ रुपये में पूरी सब्जी और चार रुपये का मसाला डोसा
विश्वास न हो तो 'tribune ' अखबार में छपी इस कैंटीन की रेट लिस्ट देख लें
आज कल की महंगाई के इस दौर में आखिर कोई जगह तो है
जहाँ लोगों की जेब का ख्याल रखा जाता है
बस वहां तक पहुँचने के लिए थोड़ी मशक्कत करनी पड़ सकती है