Sunday, September 6, 2009


जंगल में मोर नाचा,हमने देखा
लेकिन बन्दीपुर / नागरहोले के जंगल में काबिनी नदी के किनारे बने जंगल लौज तक पहुँचने में रूह काँप गयी
बंगलोर से २३९ km पर बने इस eco resort तक पहुँचने के लिए मैसूर हो कर जाना था
जब मद्दुर के पास कामथ अल्पाहार में डोसा,इडली वड़ा और अक्की रोटी का नाश्ता किया तो उत्साह देखने लायक था
लेकिन जंगल में रास्ता भटक कर भोजन भट्ट परिवार 'Orange county' रिसॉर्ट पहुँच गया
जंगल लौज वालों से संपर्क किया तो उन्होंने कहा कि आप चिंता न करे ,गाडी वहीँ छोड़ दीजिये,
आपको लेने के लिए नाव भेज देंते है ,बात वाजिब लग रही थी
जब नाव में पाँव रखा तो दिल काँप गया, काबिनी नदी( कावेरी की सहयोगी नदी) पूरे उफान पर थी
अच्छा खासा पानी बरस रहा था ,बिटिया रानी तो मस्त थीं लेकिन भोजन भट्ट और संगिनी का दिल काँप रहा था
अकेले नाविक के सहारे डरते डरते यात्रा पूरी हुई
जंगल लौज पहुँच कर दिल आश्स्वस्त हुआ कि ठीक जगह आ गएँ है
१५०० km के क्षेत्र फल में फैले जंगल में हाथी पकड़ने की 'खेद्दा'प्रथा की यादें जुडी हुईं हैं
मैसूर के महाराजा और ब्रिटिश वायसराय का शिकारगाह आजकल वन जीवों के बचाव का काम कर रहा है
सफारी के दौरान चीतल,साम्भर ,हिरन के झुंड निर्भय होकर घूमते दिखे
जंगली भैसें, गौर और हाथी का बच्चा भी दिखा
कई तरह की चिडिया ,जल पक्षी और मोर दिखे
एक जगह गाइड ने जीप रोक कर बाघ के पद चिन्ह दिखाए
शायद सुबह इधर से गुजरे थे महाराज
रुक रुक कर बारिश हो रही थी
काबिनी नदी के पानी को रोकने से बनी झील का दृश्य अद्भुत था
हर तरफ हरियाली देख कर लगता नहीं था की कहीं सुखा भी पड़ा है
लौट कर प्याज के पकोडे और चाय मिली
टेंट ,कॉटेज और कमरों में गरम पानी से स्नान की व्यवस्था थी
रात के भोजन में स्थानीय शैली की सब्जियां थी ,गर्म दाल ,और रसम थी
मीठे के लिए सेवियां और खीर का मिश्रण था
अच्छी नींद आई
अगली सुबह जब फिर नाव से काबिनी नदी में सफारी का प्रस्ताव आया
तो परिवार ने मना कर दिया