
बंद होना एक रेस्तरां का
काफी हाउस कहना अतिश्यक्योति होगी
लेकिन ज्यादातर काफी पीने ही हम लोग वहां जाते थे
बंगलोर में जिस सोसाइटी में हम लोग रहते हैं ,उसमे निलगिरिस का सुपरमार्केट है
बाहर वालों को बता दूँ कि निलगिरिस दक्षिण भारत का सबसे पुराना सुपरमार्केट है
जिसकी शुरुआत डेरी फार्म के तौर हुई थी लेकिन अच्छे उत्पादों की वजह से विस्तार में देरी नही लगी
बंगलोर की ब्रिगेड रोड वाली दुकान पर हमेशा भीड़ रहती थी
नीचे बेसमेंट में बेकरी और ऊपर वाली मंजिल पर रेस्तरां
लेकिन हमेशा भीड़ भाड़ होने से कभी तस्सली से बैठ कर खाने का सुख नहीं मिला
इसलिए जब मकान एअरपोर्ट रोड वाली सोसाइटी में मिला तो भोजन भट्ट का पूरा परिवार गदगद था
निलगिरिस से खरीदारी और गाहे बगाहे नाश्ता खाना
वह भी कैम्पस के अन्दर ,सड़क पार करने की ज़रूरत भी नहीं
नाश्ते में दक्षिण भारतीय पारंपरिक व्यंजन
इडली,वादा,डोसा,उपमा,
बंगलोर के नए उमर वालों के लिए संदविच और आमलेट भी
पर पूरी तौर से आत्मीय अंदाज़ में
इसका कारण पूरे रेस्तरां का सञ्चालन महिला कर्मियों के हाथ में था
बिलिंग से लेकर खाना पकाने और सर्व करने तक
महिला बावर्ची कुशल थीं , हम लोग अंदाजा लगते थे कि आज अमुक ने डोसा बनाया है, करारा होगा
बिल्कुल घर जैसा माहौल और स्वाद
(फर्नीचर थोड़ा घिस गया था ,अपनी जिंदगी की तरह )
साम्भर बंगलोर के आम रेस्तरां से हटकर पतली और कुछ कच्चे मसाले की खुशबू में पगी हुई
दोपहर में हर दिन अलग टिफिन बनता था
कभी आलू बोंदा ,कभी प्याज भाजी, कभी मद्रास पकौडा
बिटिया रानी को मद्दुर वड़ा पसंद है पर सही दिन हम लोग पहुँच नही पाते थे
एक बार गए तो महिला कर्मी ने पूछा बिटिया नही आई ,अच्छा हुआ ,दुखी होती
आज के सारे मद्दुर वडे एक सज्जन पार्टी के लिए ले गए
सुन कर अच्छा लगा की हमारी पसंद का कोई इतना ख्याल रखता है
इस बार सुपरमार्केट में जब ' Closed for Renovation' की तख्ती लगी दिखी
तो अंदेशा हुआ कि कहीं नए मालिक रेस्तरां को बंद न कर दें
आख़िर इतनी बिक्री तो नही है यहाँ
दो महीनों तक झांक झांक कर देखते थी कि रसोई वाला हिस्सा बरक़रार है या नहीं
पता नहीं चला
आख़िर गुरूवार को नई साज सज्जा में निलगिरिस सुपरमार्केट की फिर शुरुआत हुई
चकमकाती Tiles और नए उत्पादों से भरे स्टोर में से रेस्तरां गायब था
रसोई और फर्नीचर को हटाकर महंगे आयातित खाद्य पदार्थों को सजाया गया था
यह पूछने पर कि इडली मिलेगी क्या ,हरी टी-शर्ट पहने सज्जन ने प्लास्टिक पैक की ओर इशारा किया
मन उखड गया
कहाँ सपरिवार बैठ कर स्टील की थाली में ताज़ी बनी इडली साम्भर, चटनी के साथ खाते थे
कहाँ यह प्लास्टिक में पैक सामग्री, पता नहीं कब बनी होगी ,कहाँ बनी होगी, माइक्रोवेव में गरम कर वह स्वाद कहाँ से आएगा
और कहाँ गयीं वे तमिल महिलाएं जो हमें परोस कर खिलातीं थीं
आदत बदलनी पड़ेगी
दुनिया बदल रही है
2 comments:
यदि वह बंद न होता तो आप उसके बारे में लिखते भी नहीं। वैसे ऐसी जगहें बहुत कम ही रह पाती हैं। सदा बड़े व्यवसायों द्वारा निगल ली जाती हैं।
घुघूती बासूती
चलिये, ऐसी कितनी ही बातें हैं यादों की जो अपना अस्तित्व खो चुकी हैं मगर आपने शब्दों का जामा पहना कर यादों को तो जिन्दा कर ही लिया.
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