Sunday, June 8, 2008

तारे जमीन पर



अगर मैं आपसे कहूँ कि हर दिन ५.९१ रुपये में बच्चों को भर पेट खाना दिया जा सकता है

तो आप नहीं मानेगें
पर बंगलोर के सारे सरकारी स्कूलों में बच्चों को ताजा बना गरमा गरम चावल, सब्जियों वाली साम्भर , दही के साथ मिलता है

वो भी स्टेनलेस स्टील के विशालकाय बर्तनों में औद्योगिक तरीके से बिना हाथ लगाये पकाया हुआ

जिसे बनने के दो घंटे के अन्दर खास किस्म के ट्रक हर स्कूल मे पहुंचाते हैं

कहने कि जरुरत नहीं कि इसकी वजह से बंगलोर के सरकारी स्कूलों में पहली जमात में बच्चों के प्रवेश की गति १८% बढ़ी जबकि आठवीं क्लास के बाद स्कूल छोड़ने वाले बच्चों की संख्या में २३% कमी आई

हर दिन ८३०००० बच्चों को दोपहर का भोजन मिलता है लगभग छः रुपये की लागत से

जिसमें से १.३१ रुपये सरकार से मिलते है

संस्था का नाम है ' अक्षय पात्र' जिसमें इस्कोन मन्दिर की साझेदारी है

कंप्यूटर की दुनिया के बड़े नाम भी मदद करतें है

इनफोसिस के निदेशक मोहन दास पाई का बड़ा निजी योगदान है

इस्कोन मन्दिर से वैचारिक मतभेद हो सकतें हैं



पर बच्चो को दोपहर का भोजन मिले

इस पर सोचने की जरुरत है

ऐसा नहीं कि और हिस्सों में प्रयास नही हो रहे

कर्नाटक में ही अक्षर दसोहा योजना में बच्चों को पोंगल, लेमन राइस के अलावा मीठा शीरा भी मिलता हैं

तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में सप्ताह मे एक बार उबला अंडा या फल भी मिलता है

छतीसगढ़ में इसे माताओं की संस्था 'दंतेश्वरी समूह' 1,14521 प्राथमिक विद्यालयों में चलाती है

लोग एम् जी रामचंद्रन को मिड डे मील योजना का जनक समझतें हैं

पर इसकी शुरुआत १९२५ में मद्रास कॉर्पोरेशन ने कर दी थी

आज कल तो तमिल नाडु सरकार अशक्त बुजुर्गों तथा गर्भवती महिलायों को भी भोजन देती है

अगर ६ रुपये में भोजन बनाया/ खिलाया जा सकता है

तो ज्यादातर बच्चे भूखे पेट स्कूल जाने के लिए क्यों अभिशप्त हैं

अगर पूरे मुल्क में हर बच्चे को स्वादिष्ट और पोषक खाना देना हो

तो पूरे साल की लागत आएगी ६००० करोड़ रुपये

यह असंभव राशि नही है

जिस देश में दुनिया भर के अमीर रहतें हैं

(आंकडे यह बताते हैं कि दुनिया के सबसे अमीर २० लोगों में से कई अपने मुल्क के हैं)

जहाँ दुनिया का सबसे महंगा मकान मुम्बई में बन रहा है

वहाँ किसी को भूखे पेट रहना पड़े

सबसे बड़ी त्रासदी है

3 comments:

Unknown said...

दो टिन पहले कुछ दोस्तो के साथ मुम्बई के सबसे महगे उस मकान के पास रहने का मौका मिला था सिर्फ़ चार लोग उस मकान मे रहने वाले है और उस मकान की कीमत तकरीबन ८००० करोड़ है. आज भी देश में करोडो बच्चे बिना खाना खाए सो जातें है और स्कूल तो उनके सपने में भी नही आता.
संजय भाई आपसे यही आशा है भोजन के बहाने हीं सही भोजन भट्ट कुछ रोशनी लोगों की थाली में परोसता रहे.

VIMAL VERMA said...

संजयजी,ब्लॉग का नाम जो चुना है आपने उसे इस तरह के पोस्ट की दरकार थी...मतलब भो+जन
तो अब साथ जन सरोकार भी होता रहे....तथ्यात्मक विवरण अच्छा है...कुछ रोशनी तो हमें मिल गई....

Anonymous said...

भाई
बरसों बाद कुछ लिखने की कोशिश की है
हौसलाअफजाई के लिए शुक्रिया
भोजन भट्ट