Friday, June 13, 2008

यह असंभव नहीं है



पहले एक बार सारे सवालों पर नज़र मार लें
भूख /भुखमरी अपोषण /कुपोषण जिंदा सच्चाई है
आधी से ज़्यादा जनता हर दिन बीस रुपये से कम पर जीने मजबूर है
जो बढ़ते खाने की कीमतों के चलते मुश्किल होता जा रहा है
बेरोजगारी के हल का कोई रास्ता नही नज़र आ रहा है
शहरी गरीब को सस्ते खाने और रोज़गार, दोनों की दरकार है
गोदामों में अन्न सड़ रहा है
हाँ बाबा आगे तो बढ़ो
ऐसा नहीं हो सकता कि इन्हीं बेरोजगार लोगों को दूसरों को भोजन देने की जिम्मेवारी सौंपी जाए
पिछली कड़ी में ऐसे कुछ लोगों का जिक्र हुआ था
कर्नाटक में अक्षय पात्र, अक्षय दोष, छत्तीसगढ़ में दान्तेर्श्वरी समूह इस काम मे लगे हैं
इन्हें सरकार १.३१ पैसे फी बच्चे के हिसाब से अनाज देती है
( 50 किलो चावल के भारतीय खाद्य निगम के हर बैग में औसतन 3 किलो कच्डा (मिट्टी ,कंकड़ ,कीलें) निकलता है )
जिसे करीबन ६ रुपये की लागत में ताज़ा खाना बना कर बच्चों को देते हैं
अगर शहरों में वंचित महिलायों के समूह इस काम को लें
तो आसानी से हर गली ,मुहल्लें में एक अन्नपूर्णा रसोई खुल सकती है
जहाँ पांच-छः रुपये में हर इंसान को भर पेट खाना दिया जा सकता है
(बाद में इसका विस्तार पूरे देश में हो सकता है)
सरकार को अनाज और ईंधन देना पड़ेगा
महिलाओं को काम और आमदनी का नया रास्ता मिलेगा
समाज को इसका संचालन अपने हाथ में लेना पड़ेगा
यह शेख चिल्ली नुमा योजना नही हैं
महारास्त्र में हम्माल संघ की महिलाएं हर दिन ६-३० रुपयों में ३०००० लोगों को खाना खिलाती हैं
बिना किसी सरकारी मदद के
तो इतना असंभव भी नहीं है यह सपना
कि किसी को भूखे पेट न रहना पड़े

2 comments:

Udan Tashtari said...

संपर्क सूत्र और योजना की विस्तृत जानकारी दें तो बेहतर.

Pramendra Pratap Singh said...

जहाँ चाह वहाँ राह