Tuesday, June 3, 2008

अमृतसर का जायका


वैसे तो गुरु की नगरी मे लंगर के प्रसाद से अच्छा कुछ ही नही सकता
पर अम्बरसरिये (अमृतसर वाले) तो लगता है घर में खाना खाने में विश्वास नही रखते
नाश्ते में कुलचा चना ,पूरी छोले लेना हो तो हर गली में बने कुलचे वालों से ले लें या
चाहें तो मकबूल रोड के कोने पर बैठे सरदार जी से ले लें ,लारेंस रोड पर भी अच्छा मिलता है
इतना खस्ता ,कुरकुरा आलू, प्याज वाला तन्दूरी कुलचा और साथ में छोले
और इमली की चटनी या हरी चटनी और कटा प्याज अमृत्सरी लस्सी का जवाब नहीं अद्भुत स्वाद है जो कहीं और नही मिलता .
एकबार चंडीगढ़ में एक सज्जन अमृतसर से लाये
कुलचे चने ३४ सेक्टर में बेच रहे थे पर हमे तो बेस्वाद लगे
पूरी/कचोरी खानी हो 'कन्हैया ' का ढाबा आजमा लें जलेबी, फिरनी चखना हो तो कटरा अहलुवालिया में गुरुदास जलेबीवाले की दुकान पर धावा बोलें नान वेज का शौक रखतें हो तो अमृत्सरी मछली (तली हुई)
खाए बिना शहर न छोडें -माखन ढाबा कीमा नान-पाल ढाबा .मटन करी-प्रकाश ढाबा -ये जगहें नोट कर लें
पर लगता है हम लोग अमृतसर के गली कूँचों में भटक गए
जाना था townhall के पास भरवां दा ढाबा, पहुँच गए केसर दा ढाबा
फिरनी ललचा रही थी पर हमें तो अपने ढाबे की स्पेशल थाली खानी थी
दफ्तर ने नए रंगरूटों को शहर घुमाने की ड्यूटी लगाई थी
बहती गंगा में हाथ धोने ढाबे में घुस गए
पर यहाँ तो दूसरी ही गंगा बह रही थी रोटी पर मक्खन हो तो ठीक है
काली मा की दाल में घी का होना लाजमी है
पर पनीर की सब्जी और आलू गोभी की तरकारी भी देसी घी से सराबोर थी
गाजर का हलवा बदाम और घी से लबरेज था \
बस दही भल्ला ही इस बारिश से बचा था
खाना अत्यन्त स्वादिष्ट था
नए रंगरूट गदगद थे
पर मेरी समझ में यह बात आ गई कि दिल्ली के एस्कोर्ट्स अस्पताल ने अपनी पहली शाखा अमृतसर में क्यों खोली है
सोचा घर पहुँच कर कोलेस्ट्रोल का टेस्ट करवा लूँगा

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