Thursday, June 19, 2008


अन्नपूर्णा रसोई
कल के अखबार में मुंबई के ' माहिम दरबार ' होटल के बाहर बैठे इन दुखियारे लोगों को देखा तो एक पुरानी याद ताज़ा हो गई
अस्सी के दशक में नई नौकरी के सिलसिले में अहमदाबाद जाना पड़ा
शहर के कई हिस्सों से भव्यता टपकती थी
पर पुराने अहमदाबाद के कई बिरयानी होटलों के बाहर लोगों के झुंड उकडूं बैठे थे
चेहरे पर न बयान की जा सकने वाली पीड़ा और आशा का मिला जुला भाव था
पहले सोचा काम की तलाश में बैठे होंगे
पर दिन के बारह बजे धूप में कौन इन्हे काम देगा
ठेकेदार तो सुबह ही मजदूर पकड़ लेते हैं
पूछ ताछ की तो पता चला कि ये लोग खाने की उम्मीद में होटल के बाहर इंतज़ार कर रहें है
कोई दयालु सज्जन इधर से गुजरेंगे तो होटल मालिक को पचास-सौ रुपये देकर इनमे से कुछ लोगों के एक टाइम के भोजन का इंतजाम हो जायगा
इसी उम्मीद में ये लोग बैठे हैं
धनी लोगों की माया नगरी के ये हाल देख कर मन दुःख और क्षोभ से भर गया
गुजराती लोग तो सारी दुनिया में 'soup kitchen' चलाते हैं ,फ़िर अपने शहर में क्यूं नहीं
कल यही चित्र मुंबई के होटलों के बाहर दिखा
खस्ता हाल ये वो लोग हैं जिन्हें दिहाडी का काम न मिलने पर खाने की तलाश में यूँ भटकना पड़ता है
किसी मेहरबान की निगाह की इंतज़ार में बैठे लोग दस रुपये प्लेट का खाना (अगर मिल जाए ) सर झुकाकर जल्दी जल्दी खाते लोग
जिससे जिंदगी की गाड़ी एक और दिन चल सके
क्या दुनिया की नई महाशक्ति बन कर उभरने का ख्वाब देखने वाले देश के पास कोई रास्ता नहीं है
पंजाब में गुरद्वारों के लंगर के चलते कई शताब्दियों से हर किसी को भोजन उपलब्ध है
बिना किसी सवाल ज़वाब के
कारसेवा के चलते हर आदमी किसी न किसी तरह से सहयोग देता है
मुस्लिम समाज में 'ज़कात' की परम्परा रही है
बिना किसी सरकारी सहायता के १९७४ से पुणे की हमाल पंचायत ३०,००० लोगों को सस्ते में भोजन उपलब्ध कराती है
(शिव सेना सरकार की एक रुपये में 'झुनका भाखर' की स्कीम क्यों नाकामयाब हुई ,इस पर फिर कभी )
हम्माल समाज की महिलायों को रोज़गार के अवसर भी मिलें हैं
असली सवाल क्रय शक्ति का है जवाब वृहत्तर समाज की इच्छा शक्ति का है
कहीं कोई कमी है
तभी भारत के सबसे अमीर लोगों के शहर में हजारों लोग इंतज़ार में है
एक मेहरबान निगाह की
चित्र साभार

1 comment:

Udan Tashtari said...

क्या विडंबना है!!