Monday, June 2, 2008

पंजाबी ढाबा


कहतें हैं कि जब सत्यजित राय 'पाथेर पांचाली ' (song of the road)बना रहे थे तो पैसे कम पड़ने पर तब के बंगाल के संवेदनशील मुख्यमंत्री ने p.w.d. विभाग से कुछ मदद करादी थी आजकल तो कई बड़े ढाबे फिल्म स्पांसर करने मे सक्षम हैं वह दूसरा जमाना था जब ढाबे शहर के बाहर सड़क किनारे लगे ट्रकों की कतार से पहचाने जाते थे थके हारे ड्राईवर ने हैंडपंप पर हाथ मुहं धोया , चारपाई पर लेट कर टाँगे फैलाई नही कि छोटू पटरा बिछा देता था और ताजा गरमा गरम खाना परोस देता था ,आर्डर लेने की जरुरत नही थी अब तो बड़े शहरों के बीच बने स्टार होटलों में भी नफीस ढाबे खुलने लगे हैं .बड़ी मेहनत से ढाबे का माहौल बनने की कोशिश होती है , पुराने ट्रक की chasis , बे तरतीब पड़े मूढे, ब्लैक बोर्ड पर लिखा मेनू और उस पर लिखे पांच तारा दाम एकबार दिल्ली के क्लारिजस होटल के 'ढाबा 'रेस्तोरंत का बिल देखकर संगिनी ने मेजबान से कह दिया कि इतने में तो बंगलोर की हवाई जहाज दो टिकटें आ जातीं . लेकिन असली ढाबे तो अभी भी हाईवे पर ही मिलते हैं, पहचाने कैसे कुछ लोग कहते है असली ढाबे में मेनू कार्ड नहीं होना और गर्मागर्म खाने के सीमित व्यंजन उसकी पहचान हैंअब तो दक्षिण भारत में भी पंजाबी ढाबा दिख जाता है पर चलते हैं असली पंजाबी ढाबों की तलाश मेंपहली कड़ी में अमृतसर का भरवां दा ढाबा

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