Monday, June 8, 2009


भोजन का पंजाबीकरण
हाल में उस्ताद वीर संघवी साहब केरल के वायनाड क्षेत्र के किसी होटल में शूटिंग कर रहे थे
भोजन काल में जब उन्होंने उम्मीद की
शायद केरल का पारंपरिक भोजन इस आतंरिक भाग में उपलब्ध होगा
अप्पम और stew मिले न मिले ,मीन मोइली तो ज़रूर मिलेगी
लेकिन केवल बटर चिकन ,काली दाल और पनीर की सब्जी उपलब्ध थी
उनका निष्कर्ष था कि यश चोपडा की फिल्मों के प्रभाव के चलते अब सारा देश पंजाब मय हो गया है
करवा चौथ के व्रत की कथा सारे हिंदुस्तान को मालुम है
तमिलनाडु तक में सलवार कमीज अब सामान्य पहनावा है
पता नहीं उनकी थीसिस कितनी सटीक है
लेकिन भोजन के मामले में उनका तीर सही निशाने पर है
आजकल हिन्दुस्तान में कहीं भी बाहर खाने का मतलब है
तंदूरी रोटी/नॉन ,काली दाल और शाही पनीर
नान वेज का मतलब कबाब और तंदूरी चिकन
होटल का मतलब ढाबा
देश के अलग हिस्सों में स्थानीय भोजन की समृद्ध परंपरा रही है
लेकिन आजकल रंग बदले हैं
मध्य प्रदेश में आप किसी मझोले साइज़ के रेस्तरां में दाल बाफला मांग कर देखिये
मंगलोर में अक्की रोटी और नीरा डोसा पूछिये
लखनऊ में लिट्टी दाल बाटी चोखा के बारे में जानकारी मांगिये
गोवा में कुम्बी दिशेस का पता करिए
मिले न मिले पंजाबी थाली ज़रूर मिलेगी
विदर्भ में सावजी होटल और दक्कन में मिलटरी होटलों में नान वेज खाने का रिवाज रहा है
लेकिन आजकल कहीं इसका ज़िक्र नहीं आता
भोजन भट्ट भी ढाबा पुराण खोल कर बैठ जाते हैं
अस्सी के दशक में रामायण सीरियल ने राम की छवि के लिए जो काम किया था
आप अरुण गोविल की धनुर्धारी छवि से हट कर राम जी की कल्पना नहीं कर सकते
आजकल फिल्मों/मीडिया की मदद से खाने की भी वही हाल है
इसमें हर शहर में खुले मोती महल/शान ए पंजाब जैसे होटलों का भी खासा योगदान है
लगता है जायका बदल रहा है

2 comments:

admin said...

सचमुच, जायका तो बदल ही रहा है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

डॉ दुर्गाप्रसाद अग्रवाल said...

वाकई, यह बहुत दुखद है. नयी चीज़ें आ रही हैं, उनका स्वागत, लेकिन हम अपने पारंपरिक व्यंजनों को भूलते जा रहे हैं. शायद हर प्रांत में ऐसा हो रहा है.