Friday, August 28, 2009


भूख के खिलाफ
हर हाथ को मिले काम
हर जनवादी संगठन का यह नारा है
खाद्य पदार्थों की बढती कीमतों और सूखे की मंडराती छाया के समय
हर पेट को भोजन मिले'
संवैधानिक अधिकार हो जाना चाहिए
बढती सामाजिक/आर्थिक असुरक्षा के माहौल में भोजन की सुरक्षा
का अधिकार (food security) मौलिक अधिकार हो
अब समय आ गया है कि परिवार के आधार पर भोजन का निर्धारण बंद हो और हर आदमी को ज़रूरत के हिसाब से खाना मिले
इसके लिए ज़रूरी है कि यह बहस ज़ल्दी से बंद हो
कि कितने लोगों को ३५ किलो अनाज /दो रुपये किलो मिलेगा और
कितनो को २५ किलो/३ रुपये किलो मिलेगा
हर ज़रूरतमंद को PDS से अनाज मिलना चाहिए
६.२ करोड़ लोगों का आंकडा भ्रामक है ,
वंचित जनों की संख्या दुगनी से ज्यादा है
शहरी गरीब /मेहनतकश इस आंकडे से बाहर है
इसके पहले दुर्भिक्ष फैले /भुखमरी की खबरें अखबार और टीवी चैनल की सुर्खियाँ बननी शुरू हों
अनाज के भंडार खोलें जाएँ
कानूनी अधिकार मयस्सर हों
ज़माखोरी नियंत्रण का कानून सख्ती से लागू हो
संभव हो तो 'अन्नपुर्णा रसोई' शुरू की जाएँ
२१ सदी की उभरती महाशक्ति को कुछ प्रयास इस दिशा में भी करने चाहिए

1 comment:

Rakesh said...

At this time of rising food costs, right to food should be fundamental right. Besides, there is need for sensitisation of public specially kids, that there is need to control the food intake not only to avoid obesity but also cater to the needs of those who desparetely need it. There is also need for starting grain banks in draught affected districts.

rakesh