Tuesday, August 26, 2025

 काशी विनायक मेस 

मद्रास की सदाबहार गर्मी में भी एक पखवाडा भयंकर साबित होता है

मई और जून के बीच के दिनों को अग्नि नछत्रम की संज्ञा मिलती है 

समझदार आदमी चुप चाप घर में बैठा रहता है 

इन्हीं दिनों में संगिनी का मद्रास आने का कार्यक्रम बना 

समझदारी का काम होता ,किसी a.c. भोजनालय में भोजन का कार्यक्रम रखना 

भोजनभट्ट के दिल  में Triplicane के पास गली में ५० साल से चल रहे 

काशी विनायक मेस में थाली खाने की इच्छा बनी हुई थी 

वैसे तो दक्षिण भारत के हर प्रान्त की थाली का अपना रिवाज़ है 

पर मद्रास में रह कर केले के पत्ते पर तमिल सापड (भोजन) को भी आजमाना था 

 तो चल पड़े बुजुर्ग दम्पति सड़ी हुई गर्मी में पसीना पोंछते,गली के छोर के नॉन a.c. मेस का खाना खाने 

मेस की व्यवस्था को देख कर सुकून हुआ 

छोटे से हॉल में मुश्किल से चालीस लोग बैठ सकते थे 

अंदर झाँका तो दिखा की हर ग्राहक की अलग मेज कुर्सी सजी थी 

प्राइमरी पाठशाला  की तरह 

 थाली का कूपन द्वार पर बैठे खजांची से मिल सकता था 

सौ रुपये की थाली में ,अतिरिक्त दस रुपये में घी /podi (दाल का पाउडर) और दस रुपये और देकर एक कप दही ली जा सकती थी 

अंदर हर मेज पर  केले का पत्ता बिछा था ,उसे पानी से हलके से धोने की परम्परा है 

फिर नीली यूनिफार्म वाले सेवकों ने पहले  ,निम्बू अचार,मिठाई  और चटनी परसी 

गाजर बीन्स की सूखी सब्जी परिचित सी लग रही थी,पर करी पत्ते का प्रचुर मात्रा में उपयोग किआ गया था 

साथ में गीली सब्जी को  कुर्मा की संज्ञा दी जा रही थी , दही और पापड़ भी परोसे गए 

दाल का इंतज़ार था ,पर उसके पहले  गरमा गरम चावल का पहाड़ देखकर हम दोनों घबरा गए 

दाल कम  मात्रा में थी पर घी डालने से मज़ा बढ़  गया 

सांभर और रसम का स्वाद उत्कृष्ट था 

इस शाकाहारी भोजनालय के दीवानो की भीड़ बाहर बढ़ रही थी 

गर्मी के मौसम से बेफिक्र 



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