महानगर में भूखे पेट
जब अखबार और टीवी चैनल बड़े शहरों के नए रेस्तौरंतों की चटखारे वाली खबरों से पटे हैं
वरिष्ठ सरकारी अधिकारी 'हर्ष मंदर' ने 'हिन्दू' अखबार में बेसहारा लोगों की एकाकी ज़िन्दगी की भयावह तस्वीर खींची हैं पटना , दिल्ली , मदुरै और चेन्नई की सड़कों पर पिछले दो सालों में बेघर लोगों के सर्वेक्षण से
यह साफ़ है कि मजबूर लोग किसी की दया या मेहरबानी पर जिंदा नहीं रहना चाहते
बीस फीसदी लोग भूखे रहते हैं पर किसी रिश्तेदार या मंदिर की सीढियों पर हाथ फैलाते नजर नहीं आते
महानगरों की जगमगाती रोशनी के बीच ये भूखे चेहरे आपको शायद नहीं दीखते
मध्य वर्ग के सुरक्षा कवच में बैठे हम आप इन बेसहारा लोगों को निगाह से दूर रख कर भूल जाना चाहतें हैं
बड़े लोगों की नज़र में सड़क के किनारे पड़े ये लोग नए भारत की चकमक छवि पर धब्बा हैं
ज्यादातर बेघर बच्चे भोजन खरीद कर खातें हैं
बुरे दिनों में दरगाह,गुरुद्वारा या मंदिर का प्रसाद इनका सहारा बनता हैं
छोटे बच्चे कूड़ेदान में खाना खोजने को अभिशप्त हैं
एक बेसहारा महिला हर सुबह दो रुपये की चाय पीकर कूड़े /फटे कपडे खोजने निकल जातीं हैं
दिन भर की हाड तोड़ मशक्कत के बाद अगर आमदनी हुई तो
आठ रुपये में सड़क के किनारे पर ठेले वाले से एक प्लेट चावल दाल और सब्जी खरीदती हैं
शाम को तीन रोटियां छह रुपये में मिल जाती है
ये सब कुछ तीस रुपये की औसत आमदनी से निकलना पड़ता है
. कभी कभी होटलों के बाहर समोसों के टुकडों या बिस्कुट से काम चलाना पड़ता है
कई दिन एक बार भी भोजन मुश्किल से मिल पाता है
बड़े शहर की निर्मम ज़िन्दगी का एक पहलू
हर्ष मंदर साहब को साधुवाद
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