
नागपुर की यादें
१९८९ में अगस्त की बात है .
श्रीनगर में बैंक में नौकरी कर रहा था
अभी कश्मीर वादी आतंकवाद की गिरफ्त में नहीं आई थी
एक दिन अचानक तार मिला कि नयी नौकरी नागपुर में लग गयी है
पागल खाना चौक के सामने बने संस्थान में २० अगस्त को हाज़िर होइए ,
जहाँ दो साल तक ट्रेनिंग दी जायेगी
उन दिनों संस्थान की पत्रिका 'The File' में गाहे बगाहे स्थानीय भोजनालयों के बारे में लिखता था
आखिरी अंक में सारे होटलों की फेहरिश्त बनाने की कोशिश की ,अगले बैच की मदद के इरादे से
हाल में 'The File' का पुराना अंक मिल गया ,आप भी देखें ,बीस साल बाद इन में से कितने होटल बचे हैं
१. अलंकार- सीता बलडी- ६ रुपयें में विशालकाय पेपर मसाला डोसा मिलता था ,जो दो लोगों के लिए पर्याप्त था
२.अशोका- सदर- मेस बंद होने पर अधिकाँश यार दोस्त यहीं दिखते थे,भुना मुर्ग लाजबाब लगता था
३.अर्जुन- सदर -रस रंजन के शौकीन मित्र इसकी पहली मंजिल पर मिलते थे
४.आर्य भवन- सीता बलडी- शाकाहारी व्यंजन और थाली मिलती थी -पनीर भरता याद है
५.बब्बू का होटल-मोमिन पुरा- सड़क छाप जगह में मटन बिरयानी मिलती थी -स्वाद उम्दा था
६.जगत-सीता बलडी- तीन मंजिले होटल में खाया पाव भाजी और कुल्फी फलूदा याद है
७.नम्रता- सदर में मोतीमहल होटल के पास बना सरदार जी का ढाबा अनादि वर्माजी को काफी पसंद था पंद्रह रुपये में एक प्लेट बटर चिकन मिलता था और २६ रुपये में तंदूरी मुर्ग
८. नानकिंग- -सदर -छोटी सी जगह में चीनी मूल के परिवार का साझा प्रयास
.मोती महल -पारंपरिक पंजाबी खाने का अड्डा- यहाँ खा कर लगता था कि देश में खाने के तेल की किल्लत नहीं है
१०.पर्ण कुटीर- eTHNIC EATERIES का सूत्रधार रेस्तरां -यहां महाराष्ट्रीय थाली में ज्वार रोटी,भाखरी ,पंचामृत सब्जी और कचुम्बर सलाद मिलता था -बाद में होटल के बाहर पान की दूकान पर पक्षियों के आकार के पान खाए जाते थे
बीस साल बाद मित्रों का नागपुर में फिर से मिलने का इरादा है ,देखें क्या कुछ बदला है