Friday, May 11, 2018

बारिश में कांदा भाजी -पहाड़ी किले पर


इतने सारे शहरों में इतने खानों का लुत्फ़ उठाया 
सड़क किनारे ढाबों से लेकर पांच तारा होटलो में मज़े लेकर खाये गए व्यंजन 
दोस्तो की दस्तरख़ानों से अज़नबी ठिकानो में चोरी छिपे खाये गए पकवान 
पर याद करने बैठो तो जेहन में आतें  है दो दिलचस्प सफर के भोजन के ख्याल 
पुणे से सिंहगढ़  के किले के भ्रमण की याद ताज़ा होती है  
पुणे से २५ किलोमीटर   दूर पहाड़ी पर बना यह किला बाल गंगाधर तिलक के पुराने निवास के लिए भी मशहूर है 
दोस्तों की सलाह पर सपरिवार पिकनिक का कार्यक्रम यूँ ही बन गया 
बारिश की हलके छींटों के बीच खाये गए भुट्टे ,तसले में कोयले पर सिंके भुट्टे पर नमक मिर्च और निम्बू का ज़ायका 
दुर्ग की दीवार के सहारे चलते खाये भुट्टों का स्वाद आज तक याद है 
बारिश भी अब ज़ोर पकड़ने लगी थी 
सैलानी अब सर छुपाने के लिए जगह  खोजने लगे थे 
चलते चलते भूख लग जाना लाज़िमी था ,

उस दिन खाये कांदा भाजी (प्याज के पकोड़े) और 'पिठला भाख री  ' का स्वाद कभी नहीं भूलता 

किले के मुख्य द्वार से थोड़ा आगे टप्पर दाल कर बनी कच्ची रसोई दिखी 
तिरपाल के नीचे प्लास्टिक की कुरसियां और बेंच भी भीग चुकीं थीं 
चूल्हे पर गर्म कढ़ाई पर झुकी महिला और उनका परिवार बुलावा दे रहा था 
चूल्हे के पास आश्रय मिला तो ध्यान ताजे पकोड़ों और चाय पे जाना ही था
बारिश के मौसम में खड़े भीगते खाये  प्याज के पकोड़े और लहसुन मिर्च की लाल चटनी का स्वाद नहीं भूलता 
यह तो महज़ ट्रेलर था 
 दिव्य भोजन तो अभी बाकी था 
निगाह घुमाने की  देरी थी कि परोसी गयी ,स्टील के प्लेट में गर्म सिंकी भाखरी(ज्वार की रोटी ),
साथ में बेसन का पिठला (बेसन को पानी में भिगो कर बनाया लप्सी जैसा स्वादिष्ट व्यंजन)
बेसन को हल्दी और मिर्च के साथ घोल बना कर कढ़ाई में ,लहसुन,हरी मिर्च ,राइ की बघार  के साथ छौंका और पकाया जाता है ,
ऊपर से ताज़ा कटा हरा धनिया और निचोड़ा निम्बू का रस इसे लाज़वाब बना देता 
इसके साथ परोसा गया प्याज और लाल मिर्च की चटनी (ठेचा)
और साथ में मिट्टीके कसोरे में जमाई ताज़ा दही 
पूरा ग्रुप मुग्ध था अनजानी जगह की दिलचस्प शाम के इस अनपेक्षित मोड़ से 
कीमत के बराबर, पर और खाने का लगातार आग्रह 
ट्रेक्किंग तो शायद बहाना था पर इतनी भूख कभी और लगी हो,याद नहीं 
ग्रामीण परिवार की उस छोटी रसोई में खाये भोजन की याद कभी नहीं भूलती


सह्याद्रि के पहाड़ों की खुशनुमा शाम में बारिश से लुका छिपी खेलते  बादलों में से इंद्रधनुष झांकने लगा था 





1 comment:

अतुल्य said...

मनोरम, हमें भी घुमवा दिया

fix rats! webgl hit a snag